________________
द्रोपदी स्वयवर
www.mir warm ~~rammmmm युवराज को दे दूँ और तुम्हारे जीवन की विशालता में कमी रहे तो मुझे जीवन भर दुःख के अगारों में जलते रहना पडेगा। इससे तो अच्छा है कि तुम स्वय ही अपना वर चुन लो। अतः शीघ्र ही मैं तुम्हारे लिये स्वयवर का प्रबन्ध किये देता हूँ।" द्रपद की इन बातों को सुनकर गोद में बैठी हुई राजकुमारी ने लज्जा का अनुभव किया और वह उसी समय पिता को वन्दन कर अन्तःपुर में चली आई। ___ इधर महाराज द्र पद अपने मन्त्रियों को बुलाकर कहने लगे मन्त्रीवर । आज राजकुमारी द्रोपदी सदा के भांति पद वन्दन के लिये मेरे पास आई अनायास ही मेरी दृष्टि उसके शरीर पर पडी और वह कुछ दू ढ़ने लगी। मैंने देखा कि उसके अगों से यौवन प्रस्फुटित होने लगा है और वह वयस्क भी हो चुकी है । उसमें स्वय सोचने समझने
और निर्णय करने की क्षमता भी आ चुकी है। इसलिए यही उपयुक्त है कि उसका विवाह कर देना चाहिये क्योंकि "अधिक मात्रा में बढ़ा हुआ धन वयस्क एव यौवनपूर्ण कन्या और कला निपुण तथा बलिष्ठ पुत्र का माता पिता के लिये सम्भाल कर रखना दुष्कर हो जाता है।"
"महाराज | आप इतने चिन्तित क्यों हो रहे हैं, द्रोपदी एक कुलीन राजकन्या है, शिक्षा दीक्षा से युक्त है और उसे तो अपने कुल के गौरव का स्वय ही ध्यान है, अत चिन्ता की कोई आवश्यकता नहीं।" मन्त्री ने उत्तर दिया।
मन्त्री जी । जो आप कह रहे है वह उचित ही है, फिर भी यौवन अवस्था एक ऐसी अवस्था है जिसमें मनोवेगों की प्रबलता रहती है, हृदय में नाना प्रकार के सकल्प विकल्पों का उद्भव होता रहता है । जब वे पूर्ण नहीं होते तो मनुष्य चिन्तित बना रहता है और उसकी भावनाएँ किसी भी समय सीमा को तोड़ने के लिये उतारु हो सकती है, अत उन मनोवेगों को रोकना उचित नहीं।" राजा ने कहा । ____ "ठीक है मैं मानता हूँ यह अवस्था ऐसी ही होती है। किन्तु ज्ञान
और चिन्तन एक ऐसा साधन है जिससे मनुष्य अपने आपको सीमित रख सकता है और वह योग्यता राजकुमारी में है । पुत्र पुत्रियों को माता पिता इसीलिये शिक्षित करते हैं कि वे अपने आपका मार्ग दर्शन कर सकें ।" मन्त्री ने वास्तविकता दर्शाते हुये कहा।