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तप के कान पारसक ।
द्र.पद का संकल्प
५५५ यह तीनों सन्ताने द्र पद को तप के कारण मिली, इन्हें पाकर द्र पद बहुत ही प्रसन्न हुआ। वह सोचता-धृष्टद्युम्न वीर वीर है। द्रौपदी कन्या है और शिखण्डी दीखता तो पुत्र है परन्तु है नपु सक । ससार में स्त्री, पुरुष, नपु स्क तीन ही प्रकार के मनुष्य होते हैं, मेरे यहाँ तीनों प्रकार के मनुष्यों ने जन्म लिया । शिखण्डी नपुसक है, पर उसके सम्बन्ध में आकाश वाणी हुई है कि भीष्म का नाश करेगा, अत नपु सक है तो क्या है, होगा तो मेरे शत्रुओं का नाशक ही । अतएव मुझे अब चिन्ता की कोई आवश्यकता नहीं। ___ शिक्षा योग्य होने पर द्र.पद ने धृष्टद्युम्न और शिखण्डी को शास्त्र विद्या में पारगत किया । और वृष्टदयुमम्न भी कर्ण तथा अर्जुन के समान महारथी माना जाने लगा। उसे देख देख कर द्रुपद सोचता"मेरा यह कु वर कब बड़ा होगा और कब मेरी आशा पूर्ण होगी?"
द्रौपदी को चार प्रकार की शिक्षाए दिलाई गई । कन्या को दी भो चार प्रकार की शिक्षाए जाती हैं। पहली कुमारी अवस्था की शिक्षा दी जाती हैं, जिसमें अक्षर ज्ञान का, भोजन विज्ञान तथा सदाचार के सस्कार आदि का समावेश होता है । दूसरी शिक्षा वधू धर्म की दी दी जाती है कि सुसराल में जाकर सास, श्वसुर और पति आदि के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिये । और उनके प्रति उसके कर्तव्य क्या हैं, उसका क्या अधिकार है। तीसरी शिक्षा मातृ धर्म की दी जाती है। जिसमें सिखाया जाता है कि माँ बनने पर बालक का पालन पोषण कैसे करना चाहिए चौथो शिक्षा में उसके जीवन के अन्तिम भाग का कर्तव्य सिखलाया जाता है । विधवा धर्म का भी इसी में समावेश होता है।
इस प्रकार द्र पद की तीनो सन्ताने शिक्षा ग्रहण करके विद्यावान हो गई । द्र, पद को अपार हर्ष हुआ। १ पूर्वोक्त तथा उपरोक्त सारा प्रकरण ही अर्थात् द्रोण का बदला, द्र पद का सकल्प अादि प्रचलित महाभारत के आधार पर अपनी मान्यतानुसार ही दे रहे हैं । जैन ग्रन्यो में इनका उल्लेख नही मिलता ।
२ जैनागम में पाचाल अधिपति महाराज द्रपद की वृष्टार्जुन तथा द्रोपदी इन दो सतानो का ही उल्लेख प्राप्त होता है ।