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जैन महाभारत न जाने क्या परिणाम हो । अत एक ही उपाय हो सकता है कि मै तप करू और तप केवल द्रोण से बदला लेने के लिए। तप की शक्ति के सामने उसकी क्या शक्ति है। मै तप की शक्ति से उसे नष्ट कर दूगा। तप किए बिना उसके विनाश का और कोई उपाय नहीं है ।१ शास्त्रानुसार बड़े बड़े तापस्वियों ने तप के फल की कामना (निदान) की है। तप के प्रभाव से उनका मनोरथ तो पूरा हुआ पर मोक्ष के लिए इस प्रकार का किया तप व्यर्थ सिद्ध हुआ। .
निदान युक्त तप के प्रभाव से द्र पद को आश्वासन मिला कि उसे तीन सन्तानों की प्राप्ति होगी, जिनमें एक भीष्म को, एक द्रोण और एक कौरव कुल को नष्ट करेगी।
शास्त्र में कहे हुए "बैराणुबधिणि महब्भयाणि" की सत्यता का यह प्रमाण है। एक बैर को वैर से मिटाने का प्रयत्न किया कि दूसरा बैर बढ़ा । द्र पट एक वैर को मिटाने गया तो दूसरा वैर बढ़ा । इसी लिए यह कहना सत्य ही है कि केवल कौरव-पाण्डव विरोध के कारण ही महाभारत नहीं हुआ बल्कि पांचालों कौरवो का तथा गाँधारों और यादवों का वैर भी महाभारत का कारण था ।
घोर तप से प्राप्त आश्वासन को पाकर द्र, पद घर आ गया । कुछ समय पश्चात् रानी ने शुभ स्वप्न देखकर धष्टद्युम्न नामक पुत्र को जन्म दिया। जब धृष्टद्युम्न उत्पन्न हुआ तो आकाश वाणी हुई कि हे राजन् | इस पुत्र द्वारा तुम्हारी इच्छा पूर्ण होगी अर्थात यह पुत्र द्रोण का नाश करेगा।
उसके पश्चात् शिखण्डी का जन्म हुश्रा । उस समय भी एक प्रकाश वाणी हुई वह यह थी कि हे राजा इस पुत्र द्वारा भीष्म का विनाश होगा।
शिखण्डी के पश्चात द्र पढ की रानी से एक कन्या उत्पन्न हुई। उसका नाम द्रौपदी रखा गया, वह बड़ी ही सुन्दर थी । उसके जन्म के समय भविष्य वाणी हुई कि इसकी शक्ति से कुरुवश का नाश होगा।
१ प्रचलित का महाभारत कहता है कि द्रोण के नाश के लिए द्रुपद ने यज्ञ किया दो ब्राह्मणो ने उसमे यज्ञ कराया। यज्ञ की ज्वाला की लपटो से 1. एक पुत्र और एक पुत्री का जन्म हुआ । परन्तु यह विचार असम्भव है । क्योकि
अग्नि की लपटे निकालना ही यज नही, तप भी एक प्रकार का यज्ञ है।