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जैन महाभारत ही राजा द्रपद को बॉध लाये तो गुरुदेव अवश्य ही हमसे प्रसन्न होंगे
और हमारे पक्ष मे आ जायेंगे । इस समय के वार्तालाप से वे युधिष्ठिर से तो असन्तुष्ट हो ही गए हांगे, अतः उनकी प्रतिज्ञा की पूर्ति करके उन्हें आसानी से ही अपनी ओर कर लिया जा सकता है।
यह विचार करके अपने भाइयों को साथ लेकर दुर्योधन आगे बढ़ गया, उसने पाण्डवों को पीछे छोड़ दिया, तीव्र गति से वह बढ़ा। ताकि वह पाण्डवो के पहुंचने से पहले ही द्र पद को बांध सके।
कौरवों को आगे बढ़ते देख भीम के कान खड़े हुए, उसने युधिष्ठिर को सम्बोधित करके कहा-"भ्राता ! देखो कौरव कितनी जल्दी जा रहे है, वे आगे निकल गये है, कहीं हमारे जाने से पूर्व ही उन्होंने द्रपद को बाँध लिया, तो हम गुरु दक्षिणा नहीं दे सकेंगे और अर्जुन की प्रतिज्ञा भी पूर्ण नहीं होगी।"
युधिष्ठिर बोले--"भीम ' इतने उतावले मत बनो, यदि हम से पहले ही जाकर वे यश प्राप्त कर सकते हैं, तो करने दो तुम तो उस समय सहायता के लिए तैयार रहो जब कौरव भागने लगें । उस समय तुम्हें पीछे नहीं रहना होगा।'
भीम ने तुरन्त अर्जुन से भी कहा--"भ्राता द्र पद को बाँधने का प्रण आपने किया है, कहीं कौरव बॉध लाए तो आपकी प्रतिज्ञा का क्या होगा?"
"मुझे गुरुदेव की प्रतिज्ञा के पूर्ण होने से मतलब है । अजुन बोले-यदि यह यश कौरवों को ही मिलना है तो मिलने दो । गुरुदेव यह तो जानते ही हैं कि हम भी उन्हों की प्रतिज्ञा पूर्ण करने जा
इस प्रकार पाण्डव स्वाभाविक गति से अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होने लगे और कौरव उनसे आगे तीव्र गति से आगे बढ़ते रहे। जब वह द्र पद की राजधानी के निकट पहुंचे तो दूतों ने द्र पद को सूचना दी कि कौरव पाण्डवों ने चढ़ाई कर दी है। यह सुनते ही वह समझ गया कि वे द्रोणाचार्य की प्रतिज्ञा को पूर्ण करने के लिए आये होंगे। वह उस समय सोचने लगा कि वास्तव में उसने द्रोण का अपमान करके अच्छा नहीं किया था। विना बात के एक युद्ध उसके सिर पर आ गया और न जाने इसका क्या परिणाम हो। पर दूसरे