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जन महामारत
फिर ऋध होकर उसने कहा-"अच्छा, तो फिर तेरे इस दुष्कृत्य को यही सजा है कि तुझे उसी डोम को दे दिया जाय, ताकि जीवन भर अपने दुष्कृत्य के लिए रोती रहे । मैं तेरे लिए कल अपने वचन से मुकर गया, पर आज तेरे किए का दण्ड दिया जायेगा और मै अपने वचन को पूर्ण करने का यश भी प्राप्त करूगा।"
उसने उसी समय एक सेवक को उन डोमों को ले आने का आदेश दिया । डोम दरबार में आ गए, तब रुक्म ने वैदर्भी का हाथ डोम रूपी प्रद्युम्न कुमार के हाथ मे देते हुए कहा-"लो यह है तुम्हारी रोटी सेकने वाली । मैं अपना वचन पूर्ण करता हूं।"
डोम रूपी प्रद्युम्न कुमार ने रुक्म का बार बार धन्यवाद किया और दरबार से वैदर्भी को लेकर द्वारिका को 'चला आया। जब वह दरबार से चला आया, तब रुक्म का क्रोध कुछ शात हुआ और वह सोचने लगा, राजकन्या डोम को दे देने से तो अच्छा था कि प्रद्युम्न कुमार के
साथ हुए उसके विवाह को ही स्वीकार कर लिया जाता। वास्तव में __ मैंने यह अच्छा नहीं किया । बेटी से भूल हो गई थी तो इसका इतना कठोर दण्ड देना नहीं चाहिए था । अब लोग मेरा उपहास करेंगे।
यह सोचकर उसने नौकरों को आदेश दिया कि उन दोनों डोमों को तुरन्त खोजकर लाओ । नोकर गए उन्होंने खोज की, पर डोम कहों न मिले । राजा को बहुत दुख हुआ।
उधर जब वैदर्भी सहित प्रद्युम्न शाम्ब सकुशल द्वारिका पहुंचे तो रुक्मणि को बड़ी प्रसन्नता हुई । उसका हृदय कमल रूपसी वैदर्भी को अपने प्रासाद में पुत्र वधू के रूप में प्राप्त कर अनायास ही खिल उठा, जो कि पहले उसके लिए सदा त्रसित रहता था। फिर प्रद्युम्न कुमार ने एक दून द्वारा रुकम को वास्तविक बात कहला भेजी। पश्चात् विधिवत् वैदर्भी का विवाह कुमार के साथ कर दिया गया।
इस प्रकार रुक्मणि वैदर्भी, प्रद्युम्न और शाम्ब के मुखकमल तथा उनके अनुपम कार्यों को देख देख कर सदा प्रफुल्लित रहने लगी।