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प्रद्युम्न कुमार तथा वैदर्भी
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प्रद्युम्न कुमार बोला-''यदि तुम मुझ से विवाह करने को तैयार हो तो आओ हम दोनो मिल कर आज रात्रि में ही एक हो जाये।" ____दोनों में बहुत देर तक बाते होती रहीं। और प्रद्युम्न कुमार ने उसे इस बात पर राजी कर लिया कि माता पिता की आज्ञा बिना ही वे दोनों विवाह के सूत्र में बध जायें । उसी समय कपडों और उचित सामान का प्रबन्ध किया गया । प्रद्युम्न कुमार ने उसे कगन पहनाया और उसकी माग सिन्दूर से भर दी। इस प्रकार उनका विवाह सम्पन्न हो गया।
प्रात जब धाय ने विदर्भी की मांग में सिन्दूर देखा तो उसने यह बात रानी से जा कही । रानी ने सुना तो उसे प्रतीत हुआ मानो किसी ने उसे पहाड़ पर से उठा कर हजारों गज नीची खाई मे फेद दिया हो। वह भागी भागी वैदर्भी के पास गई और मांग को सिन्दूर से भरा देखकर वह पूछ बैठी । विदर्भी तेरी मांग किसने भरी ?"
"प्रद्युम्न कुमार ने।" + वैदर्भी ने उत्तर दिया।
रानी के हृदय पर एक भयकर चोट पडी, फिर भी सम्भलते हुए, उसने पूछा- 'कब ?
"रात्री को।" "क्या वह आया था ?" "हां " "माग क्यों भरी " "हम दोनों ने विवाह कर लिया।"
उत्तर सुनकर रानी से न रहा गया, वह फूट पड़ी। उसने सहस्त्रों गालियां दी। नेत्रों से अश्रुधार बह निकली। रोती हुई रुक्म के पास गई। ___ रुक्म को जब इस बात का पता चला तो वह अपने आप में न रहा, क्रोध से उसका रोम रोम जलने लगा उसने वैदर्भी को बुलाकर कितनी ही जली कटी सुनाई और अन्त में बोला-"तूने मेरी नाक कटा दी है । तूने मेरी गर्दन सारे ससार के आगे झुका दी है। इससे तो अच्छा था कि कल तुझे मैं उस डोम को ही दे देता।"
+ऐसा भी उल्लेख पाया जाता है कि वह सर्वथा मौन रही। त्रि०