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जैन महाभारत ___ अन्त में रुक्म ने पूछा-"तुम लोग कहां से आये हो ? कहाँ के रहने वाले हो।" __ डाम के वेष मे छुपे प्रद्युम्न कुमार ने कहा- "महाराज हम तो खाना बदोश हैं, मांगते खाते फिरते हैं। हमारा कहाँ घर, कहाँ ठिकाना, जहाँ रात हो गई वहीं विश्राम कर लेते हैं। बस वही बात है
जहा मिल गई तवा परात ।
वहीं बिताई सारी रात ॥ इसी प्रकार से घूमते घामते हम द्वारिका से आ रहे है।" ज्यों ही प्रद्युम्न कुमार रुका शाम्ब कुमार बोल उठा
"महाराज | द्वारिका बड़ी सुन्दर नगरी है। बड़ा वैभव है उस नगर मे । हम तो महाराज वहाँ पूरे एक मास ठहरे।"
आश्चर्य से रुक्म ने कहा-'अच्छा।
'जी हां, वहाँ के नरेश का एक राजकुमार बहुत ही रूपवान, व गुणवान है । बड़ा ही करुण हृदय । शाम्बकुमार ने इतना कह कर, प्रद्युम्न कुमार की ओर देख कर कहा-क्या नाम है भई उसका ?'
'प्रद्युम्नकुमार ।'
'जी, तो प्रद्युम्न कुमार बड़ा दानी है, सगीत से उसे बड़ा प्रेम है, नाक का नक्शा तो ऐसा है कि चॉद भी शरमा जाये। पूरी तरह देवता समान है । वह दुखियों पर बड़ी दया करता है। इतना बलिष्ठ है कि अच्छे अच्छे शूरवीर उसके धनुष को टकार सुनकर ही घबरा जाते हैं । बड़ा ही यशस्वी और प्रतापी राजकुमार है। सारी राजधानी मे उसी की प्रशसा है।" शाम्बकुमार ने कहा।
प्रद्युम्नकुमार बोल उठा-'महाराज ! यू तो हम ने कितने ही राजकुमार देखे हैं, एक से एक बढ़ कर, पर प्रद्युम्नकुमार सा रूपवान विद्यावान, गुणवान, चरित्रवान, दानवीर और करुण हृदय राजकुमार
आज तक कहीं नहीं देखा । बस उसी ने अपने दयाभाव से हमे एक मास तक रोका । हम एक मास तक वहीं आनन्द करते रहे । है। इसी प्रकार दोनो ने मिल कर प्रद्युम्न कुमार की भूरि भूरि प्रशमा
की। इधर प्रशंसा सुन सुन कर रुक्म को क्रोध आ रहा था और