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जैन महाभारत पर था कन्या का हाथ पकड कर ले पायी । उधर शाम्ब ने प्रज्ञप्ति विद्या से वर मागा कि सत्यभामा आदि मुझे सुन्दर कन्या के रूप देखे तथा द्वारिकादासी अन्य लोग शाम्ब के रूप मे ही । प्रज्ञप्ति ने तथास्तु कह दिया, जिसके प्रभाव से वह उसी भाति दिखाई देने लगा | सत्यभामा हाथ पकडे हुए कन्या को वहा ले आयी जहा वे ९६ कन्याए उपस्थित थी, पाकर उसका वाया हाथ भीरु कुमार के दाहिने हाथ मे ऊपर रखा गया। इस ओर वैवाहिक रीति से कार्य सम्पन्न हो रहा था कि उधर शाम्ब अपने दाहिने हाथ मे उन कन्यायो के वायें हाथ ग्रहण कर भावर लेने लग पडा । शाम्ब को देखकर उन राजकुमारियो ने सोचा कि यही हमारे पति हैं । देव समान परम सुन्दर पति को पाकर वे अपने को धन्य समझने लगी।
वैवाहिक कार्य की समाप्ति पर राजकुमारियों के साथ माया रूपी शाम्ब ने भी शयन कक्ष मे पदार्पण किया । और उनके साथ ही भीरुकुमार ने भी प्रवेश किया । प्रासाद में पहुंचते ही शाम्ब ने अपना असली रूप प्रकट कर दिया और भीरु को वहां से भगा दिया । भीरु हाथ मलता हुआ सत्यभामा के पास पहुचा और शाम्ब के महल मे आ घुमने की बात कही। कुमार की बात सुन कर सत्यभामा को आश्चर्य का ठिकाना न रहा । वह कहने लगी-उसे तो निकाल दिया गया है, बिना आज्ञा वह नगर मे प्रवेश ही नही कर सकता फिर भला वह यहा कैसे आ गया ? पुत्र ! तुझे भ्रम हो गया है। अन्त मे सत्यभामा स्वयं देखने को आई, उसे देखते ही वह आग बबूला हो उठी, उसने कहा--घृष्ट । तू यहा कैसे पाया ? उत्तर मे शाम्ब ने कहा-माता | तुम ही तो हाथ पकड कर यहा लाई हो और यह विवाह का उपक्रम भी तुम्ही ने किया है। __ कुमार की बातें सुनकर सत्यभामा और अधिक गर्म हो गई । इस पर शाम्ब ने प्रद्युम्न तथा अन्यान्य लोगो की साक्षी दिलवायी । सभी ने कहा कि हमने स्वय आपको हाथ पकड कर कुमार को लाते देखा है । इतने में ही प्रद्युम्न बोल उठा माता | मेरे प्रश्न के उत्तरमें आपने ही उस दिन कहा था कि "तुम उस दिन पाना जिस दिन वह शाम्ब को हाथ पकड कर नगर मे ले आवे।" प्रत माता आज तुम उसे ले आयी और साथ में भी प्रागया। प्रद्य म्न की बात सुनकर सत्यभामा उनके कपट पूर्ण व्यवहार पर हाथ मलती और यह सोचती हुई अपने महल' में चली गई कि "मुझे ऐसा मालूम होता तो मैं कभी भी ऐसा शब्द मुह से न निकालती।"
पश्चात् जाम्बवती ने अपने पुत्र के चातुर्य पर प्रसन्न हो उसके विवाहोपलक्ष्य मे एक महोत्सव आयोजित किया और प्रतीभोज आदि दिया। इस प्रकार प्रद्। युम्न अपनी बुद्धिमत्ता से शाम्ब को पुन. नगर में ले आया । त्रि० व०