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शाम्ब कुमार
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यहू बेटियो की लाज पर प्राक्रमण करना प्रारभ कर दिया है । नप जब चरित्र हीन हो तो फिर प्रजा किस ठोर जाये।
श्रीकृष्ण की गरदन झुक गई। उनक हदय पर भयकर आघात लगा। जसे उनके कानों में किसी ने शूल ठोक दिए हो । हार्दिक पीडा हुई उन्हे । लज्जित होकर कहा-"प्रजाजनो । मै अापके सामने बहुत लज्जित हूँ। मुझे अपने कानो पर विश्वास नहीं हो रहा कि अपने पत्र के सम्बन्ध में ही यह बाते सुन रहा है । 'प्राप विश्वास रखिये उसे उसके अपराध का समुचित दण्ड दिया जायेगा।" __यदि शीघ्र ही आपने कुछ न किया तो गार में 'अराजकता फेल जायेगी । नागरिको ने कहा।
"आप घबराय नहीं । में शीघ्र ही इमका प्रबन्ध करूगा ।'' इतना कहकर श्रीकृष्ण ने उन्हें विदा किया और म्वय जाम्बवती के पास पहुँच । वे उत्तेजित थे । जाते ही बोले-"तुम्हारे पुत्र ने हमारे कुल की नाक कटा दी है । इतना घोर पाप किया है उसने कि हम किसी के सामने अॉख उठाने योग्य नहीं रहे।" । __ जाम्बवती अनायास ही यह शब्द सुनकर हतप्रभ रह गई उसने आश्चर्य से पूछा-"क्या किया है उसने । कुछ बताये नो सही।"
"इतना घोर पाप किया है कि उसे कहते हुए भी मुझे लज्जा आती है। उसने हमारे वश को कलंकित कर डाला।"
"क्या इतना घोर पाप कर डाला उसने ?'
"हा, हा उसने वह किया है जिसे सुनकर मैं हार्दिक पीड़ा से व्याकुल हो गया हू ।'
जाम्बवती सिहर उठी। उसने कहा-"नाथ | आप मुझे बताईये तो सही कि ऐसा क्या कर डाला उसने ?"
"उसने अनीति पर कमर बाध ली है । उसने प्रजा की बहू वेटियों की लाज लूटने का दुष्कर्म किया है। सारी प्रजा उसके इस दुष्कृत्य पर त्राहि त्राहि कर रही है । लोग त्रसित हैं । श्रीकृष्ण ने कहा।
"यह झूठ है, सरासर झूठ है। मेरा बेटा ऐमा कदापि नहीं कर सकता।' वात्सल्य की मारी जाम्बवती तीव्र गति से बोली।
'अधकार की ओर से आख लेने से अधकार समाप्त नहीं हो जाता । उत्तेजित होकर श्रीकृष्ण बोले-किमी के पाप के अस्तित्व से