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* तेइसवॉ परिच्छेद
शाम्ब कुमार पाठको को याद होगा कि मधु नृप का भाई फेटभ भी स्वर्गलोक
"गया था, मधु ने स्वर्ग से 'प्राकर प्रद्युम्न कुमार के रूप में पृथ्वी पर जन्म लिया, वह बना रुक्मणि का दिव्य शक्ति धारक पुत्र, परन्तु कैटभ सुर गति प्राप्त करने के बाद भो मधु के जीव के प्रति भ्रात स्नेह से परिपूर्ण था। अत मधु के स्वर्ग म पृथ्वी पर चले आने क पश्चात् कैटभ भ्रात-स्नेह के कारण उसके वियोग की 'अपने हृदय में चुभन अनुभव करने लगा। __ प्रद्युम्न के रिद्धि सम्पत्ति सहित जीवित ही द्वारका में श्रा जाने तथा उसके आगमन के उपलक्ष्य में महोत्सव आदि मनाने को देखकर सत्यभामा मन ही मन कुढती रही, किन्तु वह विवश थी अतः कुछ न कर सकी। ___एक दिन सत्यभामा अपने शयन कक्ष में शैया पर इसी चिन्ता में करवटें बदल रही थी कि सहसा श्रीकृष्ण उधर से आगये । सत्यभामा उठ बैठी। उचित सत्कार के पश्चात् वह श्रीकृष्ण से निवेदन करने लगी कि हे देव । जिन स्त्रियों के पुत्र नहीं होते अथवा रूपवती नहीं होती वे अपने पति की कृपा पात्र नहीं हो सकती, प्रत्युत जो पति के समान रूपवती अथवा गुणवती तथा पुत्रवती होती हैं उन्हीं पर ही पति की सर्वदा अनुग्रह वृष्टि होती रहती है। इसलिये मैं तो आपके लिए घृणा पात्र हूँ और रुक्मणि प्रेमभाजन है, क्योंकि उसने सूर्य समान तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया है, मेरे पास उसके कुमार के समान ऐसा कोई पुत्र नहीं है।'