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जैन महाभारत मे आने वाले व्यक्तियों की जो भी वस्तु मुझे पसन्द आये मैं कर रूप मे उसे ही ले सकता हूँ।" कुमार ने कहा।
"क्या तू भी श्री कृष्ण का ही पुत्र है ।" आश्चर्य चकित कौरवों ने पूछा।
"हां, मै राजकुमार हूँ।" किसी ने हास्य से पूछा- "तेरे जैसे कितने राजकुमार और हैं ?" "मेरे जैसा तो बस अकेला मैं ही हूं।" "यह भी खैर ही हुई।" “खैर तो तब होगी जब कर चुका दोगे।" भील रूपी कुमार बोला।
'ओ काले कलूटे, भैंसे | रास्ता छोड़ता है या नहीं ?" कौरवों में से एक ने ललकार कर कहा ।।
दूसरे ने व्यग्य कहा-"क्या खूब रत्न उत्पन्न हुआ है श्रीकृष्ण के
घर ?'
"अजी, रत्नो में भी चिन्तामणि है।" एक ने कहा। प्रद्युम्न कुमार ने गरज कर कहा-"सीधी सीधी तरह कर चुका कर अपना रास्ता नापोगे या रत्न और चिन्तामणि के हाथ देखने की ही इच्छा है ?" __ "जा, जा बड़ा आया हाथ दिखाने वाला, हम कोई बनिये बक्काल नहीं हैं जो तेरी बन्दर घुडकियों में आकर गांठ ढीली कर दें।" कौरव प्रधान बोला। ___ "देखता हूँ, तुम्हे रजपूती शान का वड़ा अभिमान है। भीलरूपी कुमार ने कहा-पाण्डवों को परेशान करके अपने को बलवान समझ रहे हो। किसी बलिष्ठ से टकराओगे तो छठी का दूध याद आ जायेगा।"
"श्रो चाण्डाल बक बक बन्द कर और सामने से हठ जा।" दांत पीस कर कौरव दल में से एक ने कहा । ___"ठीक है, अन्धे की सन्तान भी अन्धी ही होती है । वरना श्रीकृष्ण के पुत्र को कौन सुझाव है जो चाण्डाल कहेगा।' कुमार ने ताना मारा।
कौरव समझ गए कि विकट व्यक्ति से पाला पड़ गया है। उन्होंने