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प्रद्युम्न कुमार
५०६ श्री कृष्ण की धरोहर है, वह वापिस जानी ही चाहिए । अत न चाहते हुए भी उन्हें उनको विदाई देनी पड़ी।
कुमार का विद्या चमत्कार वायुयान में नारद जी तथा प्रदयुम्न कुमार चले जा रहे थे कि प्रद्युम्न कुमार की दृष्टि भूमि पर रेंगती दुर्योधन की सेना पर पड़ी। चतुरगिनी सेना के सरक्षण में दुर्योधन की पुत्री उदधि कुमारी की सवारी जा रही थी। उदधि कुमारी का विवाह श्री कृष्ण की सन्तान के साथ होना प्रद्युम्न कुमार के उत्पन्न होने से पूर्व ही निश्चित हो चुका था, पर चूकि प्रद्युम्न कुमार हर लिया गया था, अतएव अब उदधि का विवाह सत्यभामा के पुत्र सुभानु से करना तय पा रहा था। नारदजी ने यह बात प्रद्युम्न कुमार कोबता दी। यह बात सुनते ही कुमार ने नारद से कहा-"मुनिवर। आप चलिए मैं इन्हें एक कौतुक दिखाना चाहता हूँ । उदधि न्यायानुसार तो मेरी है ही, देखिये मैं अभी ही उसे ले आता हूँ।"
कुमार वायुयान से उतर पडा और एक विकट भील का रूप धारण कर लिया । लम्बे लम्बे दात, लोचन लाल, मोटी श्याम काया, स्थूल जांघ, हाथ कुछ छोटे और कृश, कानों में सीपी डालकर, लम्बे उलझे
और पीले रंग के केश, यह सभी कुछ ऐसा बनाया कि उसका रूप बड़ा ही भयानक हो गया । एक भारी धनुष और मोटे बाण लेकर वह सेना के आगे जा खडा हुआ। और कडक कर बोला--"रुक जाओ । पहले मुझे कर दो, पीछे आगे बढना।"
जो कौरव कुमारी की सवारी के साथ थे, सेनाके रुकने से वे आगे आ गए, पूछा-"क्यों रे भील, कौरवों की सवारी को रोकने का तुझे दुस्साहस कैसे हुआ ?"
"जानते हो यह श्री कृष्ण का राज्य है, तुम द्वारिका राज्य की सीमा में हो । बिना कर दिए आगे नहीं जा सकते।" भील रूपी प्रद्युम्न कुमार ने अकड कर कहा। ___ "कृष्ण के राज्य में हमसे कर वसूलने वाला तू होता कौन है ?" कौरवो में से एक ने आगे बढ कर उसे ललकारते हुए कहा ।
"मैं श्री कृष्ण का पुत्र हूँ। मुझे उन्होंने आज्ञा दी है कि इस राज्य