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प्रद्युम्न कुमार
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यह बात सुनकर अत्यन्त हर्ष हुआ और वह उस पुरुष के साथ वायु विद्याधर के पास पहुँचा । विद्याधर ने उसे देखते ही पहचान लिया कि वही कुमार जिसके सम्बन्ध मे ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी, आया है । बड़े आदर पूर्वक उसका स्वागत किया और अपनी कन्या का विवाह उसी के साथ रचा दिया। कितने ही दिव्य शस्त्रास्त्र दहेज में दिए और पुष्पकविमान में बैठाकर उसे विदा किया। इसी लिए तो शास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य का पुण्य ही उसकी प्रत्येक विपदा और सकट में सहयोग देता है । कुमार का पुण्य ही वन, रण, शत्र, सलिल, अग्नि तथा विकट स्थानों का सामना करने में काम आया पुण्य के कारण ही उसे विजय श्री प्राप्त हुई।
कुमार का पुनः नगर में आगमन कितने ही विद्याधर वायुयान से आगे गए और उन्होंने नगर में जाकर प्रद्युम्न कुमार के विजय पताका फहराते तथा रति सी इन्द्राणी को साथ लेकर आते कुमार का शुभ समाचार पहुँचाया । नगर में यह समाचार रुई में लगी आग की भांति फैल गया । इस अपूर्व शोभा को देखने के लिए नगर के नरनारी सडकों तथा मकानों की छतों पर एकत्रित हो गए । नारियां उज्ज्वल तथा कातिवान कुमार के रति इन्द्राणी के साथ आगमन का समाचार सुनकर सड़कों की ओर बेसुध होकर भागी। किसी के गले का हार टूट गया, मोती बिखर गए, पर उसे इस बात की चिन्ता ही नहीं, चिन्ता है तो कुमार की छवि देखने की। एक स्त्री है कि शीघ्रता में उसने आंखों में कुमकुम और गालों पर काजल लगा लिया, किसी ने वस्त्र ही उल्टे पहन लिये। बस शीघ्रता में जो हो गया, वह बड़ा ही हास्यास्पद था । पर कोई किसी की यह अवस्था देखकर हंसने वालों नहीं था। सभी को कुमार की सवारी देखने की चाह थी। F IFIF ____ ज्यों ही नगर की सडकों से कुमार रति अप्सरा सारथ में बैठकर निकला, जय जयकार से आकाशजीगयाापुष्पिों कीवर्षा होने लगी। कोई कहता-यह अनुपम जिोड़ी श्रमर रहै। कोईतिः रेक में कह उठती-“यह रोहिणी तिर्थी शशिका संगम चिरजीवीहो मम कोई कहने लगी-“यह कुमार औरसताही या इन्द्र छाइन्द्रोणाशि कुमार दोनों हाथों से रत्न तयाहुमूल्य घस्तुएं घखेरते जाते याIFa