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रुक्मणि मगल
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सारी सखियां वहीं रुक गई। रुक्मणि ने एक बार धाय माता की ओर रहस्यपूर्ण दृष्टि से देखा । जैसे कह रही हो आप तो जानती ही हैं कि मैं उस देवता के चरणों को पूजा के लिए सारे जीवन भर को जा रही हूँ। अच्छा विदा ।" धात्री की आंखों से अनायास ही दो अश्रु विन्दु टपक गए।
रुक्मणि आगे वढी, उपवन में गई और देवता को सम्बोधित करके कहने लगी हे देव । मेरी मनोकामना पूरी करा । मुझे मेरे नाथ के चरणों में पहुचा दो । मेरे नाय को यह शक्ति प्रदान करो कि वह रुक्म और शिशपाल की सेनाओं को परास्त कर मुझे ले जाने में सफल हों और शीघ्र ही मुझे मेरे स्वामी के दर्शन कराओ, जिन के लिए मैं कितने ही दिन से व्याकुल हूँ। ____ उसी समय उसे अपने पीछे पदचाप सुनाई दी। उसने पीछे घूम कर देखा । कृष्ण खडे मुस्करा रहे थे । वह उनकी छवि और ललाट का तेज देखकर समझ गई कि वही हैं उसके जीवन साथी, उसके प्राणनाथ जिन्हें वह कितने ही दिन से अपना देवता मान चुकी थी। उसने चरणोंकी ओर हाथ बढ़ाए । श्रीकृष्ण ने उसे सम्भाल लिया और बोले- अब देरि करने की आवश्यकता नहीं । चलो मेरे साथ ।" और रुक्मणि को अपने साथ ले चले । कुछ ही दूरि पर उनका रथ खड़ा था। वहा ले जाकर इसे रथ पर सवार किया और चलते बने । इधर धाय माता और अन्यान्य दासियों ने अपनी निर्दोषिता प्रकट करने के लिए रथ को जाते हुए देख कोलाहल मचाना आरम्भ कर दियाहे रुक्मिन् ! हे रुक्मिन् । दौड़ों देखो, यह रुक्मणि को रथ पर बैठाकर कौन उडा लिये जा रहा है । इन्हें पकडो, शीघ्र आओ। ___ इस करुण-क्रन्दन ध्वनि को सुनकर उद्यान से बाहर खड़े हुए सैनिक पीछा करने के लिए दौड़ पड़े और कुछ उनमें से रुक्म को सूचना देने गये । सूचना के प्राप्त होते ही महा पराक्रमी रुक्मि और दमघोष पुत्र शिशुपाल रण क्षेत्र के लिए तत्पर खडी अपनी २ विशाल वाहिन (सेनाओं) को लेकर श्री कृष्ण की ओर चल पड़े। ____ रुक्म और शिशुपाल की सेना दावानल की भॉति उग्र गति से बढी
आ रही थी कि उसे देख रुकमणि का हृदय काप उठा, वह सोचने लगी कि यदि प्राणेश्वर इनको परास्त न कर सके मेरी क्या दशा होगी?