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जैन महाभारत
mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm. ज्यो ही आगे बढ़ा सामने से एक विधवा उल्टा घड़ा सिर पर रक्खे आ गई। वह समझ गया कि यह विरोधी लक्षण साफ बता रहे है कि कार्य में सफलता असम्भव है । वृद्धजनों के आशीर्वाद बिना कभी किसी कार्य मे सफलता मिलती ही नहीं । वह सोचने लगा कि क्या किया जाय जिससे यह अपशकुन उसके कार्य की सफलता में बाधक न बने । पर ऐसी कोई युक्ति उसकी समझ में न आई । वह चिन्तित
और उदास अनमन्यस्क सा होकर विवश हो आगे चल पडा । अमी अधिक दूरि न गया था कि हीजड़े मिल गए, खून का सा घूट पीकर रह गया । रथ आगे बढ़ा दिया, तो बाई ओर कोचरी मिल गई, उसका मन मुरझा गया, उदासी और भी गहरी हो गई। रथ रोक कर सोचने लगा कि आगे बढ़ या पीछे हटू ?...उसकी समझ में कुछ न आता था, निराशा का बोझ हृदय पर लिए हुए उसने रथ को हांक दिया। कुछ ही दूर गया था कि मृगों ने रास्ता काट दिया। वे दाएं से बाएं निकल गए यह देखकर उस के आश्चर्य की सीमा न रह गई कि एक दम से अपशकुनों की भर मार हो गई। उसने फिर रथ रोक लिया । सोचने लगा कि ऐसे अपशकुनों के होने के कारण मुझे आगे न जाकर कुन्दनपुर लौट चलना चाहिए । पर वहां बैठा है क्रोधी रुक्म, यह मेरी एक न सुनेगा, उल्टी मेरे ऊपर आ बनेगी, आगे बढू तो न जाने क्या सकट आ खड़ा हो ? वह करे तो क्या करे उसकी समझ में कुछ न
आता। विवश होकर वह सोचकर कि जो होना है वह तो होगा ही उसे कौन टाल सकता है अतः जो भी हों चन्देरी जाना ही चाहिए । चन्देरी की ओर रथ बढ़ाने लगा। उसका मन उदासीन था, फिर भी वह जाने को विवश था । पर कभी कभी सोचता जाता कि जो भी अनिष्ट होगा वह कुन्दनपुर के राज्य सिंहासन, रुक्म अथवा चन्दरी के राज्यकुल का, तुझ पर भला कौन सी विपत्ति आयेगी । तेरा काम है लग्न पहुंचाना। इसलिए तुझे क्या पड़ी है चिन्तित होने की । इन बातों से अपने मन को समझाता हुआ वह चन्देरी नगर के द्वार पर पहुँच गया। ___ज्यों ही रथ ने चन्देरी में प्रवेश किया, वहां भी अपशकुन हो गया उसे विश्वास हो गया कि ज्योतिषियों की बात सत्य होगी, यह वेल सिरे नहीं चढ़ेगी। उसने द्वार पर जाकर द्वारपाल द्वारा कुन्दनपुर २