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रुक्मणि मगल
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को श्रेष्ठ मुहूर्त बताया । और साथ मे यह भी कहा कि ज्योतिष विद्या बताती है कि इस विवाह में कितने ही विध्न पडे गे, और यह वर अल्पवय में ही मर जायेगा । बल्कि सच पूछो तो यह विवाह असम्भव
प्रतीत होता है। मर जायेगा । बालक ही विध्न पडेग, ज्योतिष विद्या
"लगता है तुम भी शिशुपाल के शत्रुओं से मिल गए हो या पिता जी ने तुम्हे बहका दिया है। वरना ऐसी कौन सी बात है जिसके कारण तुम ऐसी बाते कर रहे हो?" रुक्म ने निमतिया कर आरोप लगा कर उसकी बात को ठुकरा दिया। वह बेचारा चुप रह गया । क्या कहता ? ऐसे शकाग्रस्त युवक के सामने ।
नैमित्तिक को सम्बोधित करके रुक्म बोला-तुम तुरन्त लग्न लिखो मैं देखता हूँ मैं कौन विघ्न खडा करता है।" ब्राह्मण ने लग्न लिखा । चतुर भाट सरसत को बुलाकर लग्न उसके हवाले कर दिया। रुक्म ने उसे समझा कर कहा कि इसे तुम ले कर चन्देरी जाओ, और तुरन्त यह देकर कहो कि माघ शुक्ला अष्टमी के शुभ मुहूर्त में विवाह सम्पन्न होगा। वे अपने साथ सेना भी लाए, क्योकि सम्भव है कि पिताजी की प्रेरणा से या स्वय ही कृष्ण विवाह मे कुछ उत्पात करे। वे एक दिन पूर्व ही यहाँ या जाए तो अच्छा है, ताकि यदि कृष्ण आये तो उसको
र कर यहीं मार डालने की योजना पहले ही बना ली जाय और घेर घार कर उसका यहीं काम तमाम कर दिया जाय । इन सब बातों को अच्छी प्रकार समझा देना । और देखो, पिता जी को तुम्हारे जाने का पता न लग पाए । इन सर वातो को भी तुम्हारे अतिरिक्त और कोई न जान पाये । बुद्धिमत्ता से सम्पूर्ण कार्य सम्पन्न कर देने पर तुम्हे भरपूर पुरस्कार गिलगा। इस चतुरता से काम करना कि ज्योतिपियों की बात पूर्ण न हाने पाये किसी प्रकार का विघ्न न पडे । उनसे भी अच्छी प्रकार समझा देना।"
इस प्रकार समझा बुझा कर सरसत को विदा किया। और साथ ही एक पत्र भी उसने स्वय लिखकर सरसत को दे दिया जिस में समस्त घातें ग्वव सम का कर लिखी गई थीं।
सरमन को ही पत्र, लग्न मोर सन्देशा लेकर नगर द्वार पर पहुचा उसके सामने एक नकटी कन्या रोती हुई आ गई । वह उसे देखकर पोक पडा । वा नाचने लगा यह तो पहले ही अपशकुन हो रहे हैं।