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इक्कोसा परिच्छेद*
रुक्मणि मंगल विन्ध्याचल की दक्षिण दिशा मे विदर्भ नामक देश है, जिसमें
। 'एक मनोहर नगर कुन्दनपुर है जहां भीष्मक नामक नरेश राज्य करते हैं । भीष्मक की महारानी यशोमती (शिखावती) ने चार पुत्रों को जन्म दिया, जिनमें से ज्येष्ठ था रुक्म, जो कि बड़ा ही उद्दण्ड और क्रोधी स्वभाव का था। शनि स्वाति के सिद्ध योग से यशोमती ने रुक्मणि नामक कन्या को भी जन्म दिया। जो कि परम सुन्दरी और शील स्वभाव की थी। विद्या के कारण लावण्य और चतुराई में उसके चार चाँद लग गए । आखिर उसने स्त्री उपयोगी विद्याएं पूर्ण करली और वह विवाह योग्य हो गई । तब भीष्मक नृप को उसके लिये उपयुक्त वर खोजने की चिन्ता हुई। चारों ओर दृष्टि डालने पर और नारद के परामर्श से उन्हे श्री कृष्ण ही रुक्मणि के योग्य वर प्रतीत हुए । अतएव उसने अपने मन्त्री पुत्रों और रानी को बुलाकर इस सम्बन्ध में विचार विनियम करना आवश्यक समझा । सभी को बुलाकर कहा-रुक्मणि अब विवाह योग्य हो गई है अतएव इस भार से मुक्त ही हो जाना श्रेयष्कर है । मैंने चारों ओर दृष्टि डाली, सभी राज परिवारों के कुमारों के सम्बन्ध में विचार किया, उनके गुण दोषों की खोज की, पर मुझे कोई भी ऐसा न दिखाई दिया जिसके हाथ में रुक्मणि जैसी बुद्धिमान्
और चतुर कन्या का हाथ दिया जा सके। तब मैंने राजाओं पर दृष्टि डाली । और इस परिणाम पर पहुंचा कि द्वारिका नरेश श्री कृष्ण ही इस योग्य है जिनसे रुक्मणि का विवाह किया जा सके । अब आप लोग अपना मत व्यक्त करे । मैं अपना निश्चय प्रगट कर चुका ।" - श्रीकृष्ण के सम्बन्ध में सभी जानते थे कि वे कितने वीर यशस्वी, न्यायप्रिय और सूझ बूझ के नृप है अतएव किसी ने भी कोई आपत्ति