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जैन महाभारत won woman उसने अपने को सम्भालते हुए पूछा-"क्या कस · .. ?"
"हां पिता जी, मेरे पति देव की हत्या कर दी गई ।" जरासंध क्रोधाग्नि से जलने लगा, उसने उच्चर स्वर मे पूछा-"कौन था वह मुखे दुष्ट, जिसने कंस पर हाथ उठाने का दुस्साहस करके अपनी मृत्यु को आमन्त्रित किया है ?"
जीवयशा ने रोते हुए कहा-"पिता जी | राम कृष्ण, दो अहीर पुत्रो ने अनेक राजाओं की उपस्थिति में उन की निर्भय हत्या कर दी।"
"क्या उस समय किसी राजा ने भी उनकी सहायता नहीं की ?" जरासंध ने आश्चर्य से पूछा।
"नहीं, पिता जी, नहीं, सारे यादव वशियों ने पूर्वयोजित षड्यन्त्र द्वारा मेरे पति को मरवा दिया।'
"उस समय कस की सेना को क्या हो गया था ?"
"जो कुछ थोड़े बहुत सैनिक वहाँ थे, उन्होंने उन दुष्टों को मारना चाहा, पर उनके सामने किसी की भी न चली। हाय मैं लुट गई पिता जी !" जीवयशा रोने लगी।
"बेटी, तुम इस प्रकार रुदन करके मेरा हृदय मत दुखाओ, जरासध सहानुभूति पूर्वक बोला, तुम विश्वास रक्खो कि मैं उन दुष्टों को यहीं पकड़ मंगाऊगा और तुम्हारे सामने उनकी बोटी बोटी कटवा डालू गा । ऐसा भयकर दण्ड दूगा उन्हे जिसे सुनकर पृथ्वी भी कांप उठेगी । उन मूों ने जान बूझकर विषधर के मुह में उगली
___ "पिता जी! वे अकेले नहीं हैं, उनके साथ कितने ही राजा हैं। । समुद्रविजय उनका सहयोगी है। वह ही उन्हें अपने घर ले गया है।" ' जीवयशा ने कहा।
जरासंध की ऑखों में रक्त उतर आया। वह बबकारा-"क्या समुद्रविजय ने ही उन्हें शरण दी ? उसकी यह औकात ? क्या वह मेरी तलवार के चमत्कार को भूल गया ? मैं चाहूँ तो शौरीपुर की ईट से ईट बजा सकता हूँ।"