________________
४१४
जैन महाभारत मन्त्रणा कर सत्यभामा के स्वयंवर की तैयारी की आज्ञा दी। तदनुसार सत्यभामा के स्वयंवर की घोषणा की गई। सभी राजाओ के पास समाचार भेजा कि वे स्वयवर मे सम्मिलित हों, जो वीर शारंग धनुष पर बाण चढ़ा देगा, वही सत्यभामा का पति बनेगा । इस घोषणा को सुनकर दूर दूर के राजे, महाराजे और राजकुमार स्वयवर में अपनी शक्ति, भाग्य और पौरुष को आजमाने के लिए चल पड़े।
निमंत्रण समुद्रविजय के दरबार में भी पहुंचा । वसुदेव के पुत्र अनाधृष्टि ने जब यह घोषणा सुनी तो उसने भी स्वयंवर में जाने का निर्णय कर लिया । उसे अपने बल का बड़ा दम्भ था। उसने सोचा कि शारङ्ग धनुष पर बाण चढ़ाना मरे लिए साधारण सी ही बात है, अतएव स्वयवर मे वह धनुष पर बाण चढ़ा कर सत्यभामा को तो वरेगा ही साथ ही एकत्रित राजाओं, महाराजाओ पर भी उसके बलकी धाक जम जायेगी। उसने सुन्दर, मनोहर और मूल्यवान वस्त्र पहने,
और राज्य अश्वशाला से उत्तम अश्व निकलवा कर अपने रथ में जुड़वाये, स्वय सवार हुआ और चल दिया मथुरा की ओर । वह दिन में ही स्वप्न देखता जाता, स्वप्न भी जिनमें उसकी विजय, सत्यभामा की प्राप्ति और उसकी जय जयकार थी। रथ मार्ग पर तीब्र गति से दौड़ रहा था।
गोकुल और मथुरा के बीच हलधर और कृष्ण गौए चरा रहे थे कृष्ण की बॉसुरी जगल में माधुर्य व मस्ती बिखेर रही थी। चारों ओर गौए थीं और कृष्ण बासुरी मे तन्मय थे । जब अनाधृष्टि का रथ वहां पहुँचा, बांसुरी की सुरीली ताज सुनकर वह चकित रह गया। उसका मन गॅसुरी की ओर खिचने लगा । सोचने लगा-कौन है यह संगीत का इतना पारंगत, जिसकी बांसुरी की तान चलते पथिकों के पाँव बांध लेती है, जिसकी बासुरी मेरे हृदय को अपनी ओर खींच रही है। उस मुरली वाले को देखना चाहिए। रथ रुकवाया और उतर पड़ा रथ से, पहुँचा कदम्ब वृक्ष के नीचे । पास में बैठे बलराम को उस ने पहचान लिया । भाई को सामने देखकर बलराम उठ खड़े हुए। दोनों को गले मिलते देख कृष्ण समझ गए कि आगन्तुक बलराम का कोई निकट सम्बन्धी है। उनकी बांसुरी का राग रुक गया । अनाधृष्टि व्याकुल हो गया, बोला-ग्वाले तुमने राग क्यो रोक दिया, छेड़ो