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* उन्नीसवां परिच्छेद *
कस वध देवकी के सातवें गम से कन्या जन्म जान कर कस को बहुत 'सन्तोष हुआ । वह बहुत प्रसन्न रहने लगा, उसे असीम अहकार हो गया। वह अपने समान किसी को भी रगा योद्धा न समझता और अपने को अद्वितीय बलवान् एव विद्याधारी मानने लगा। वह समझता था कि विश्व में कोई भी इतना बलशाली राज्य नहीं, जो मेरी खड्ग के मोर्चे पर आ सके । वह कहता-मैं मथुरा नरेश हू, मथुरा राज्य का भाग्यविधाता हूँ। मैं सारे मृत्यु लोक का स्वामी हूँ। मेरी शक्ति के सामने समस्त राज्य थर थर कांपते हैं । मैं चाहूँ तो अपनी एक गजेना से रण क्षेत्र में आये वीरों की हृदय गति रोक दू। मैं चाहूँ तो अपने एक बाण से मेरु को भस्म कर डालू । मैं चाहू तो क्षीर सागर को अपने एक बाण प्रहार से धधकते ज्वालामुखी के रूप में परिणत कर डालू । मेरी इच्छा हो तो वसुन्धरा के समस्त सामन्तों से पानी भरवालू । मेरे सामने भगवान की भी क्या हस्ती है। मैं वसुन्धरा का एक मात्र स्वामी हूं। मैं जगती तल का भाग्य विधाता हूँ । इस लिए 'श्रह ब्रह्मास्मि' में ही भगवान हूँ। मेरी कृपा कृपा से ही यह चराचर जीवित है, मेरी कृपा से ही चारों ओर सुख और स्मृद्धि है । मैं किसी को राजा और किसी को रक बना सकता हूँ। मैं मिट्टी से सोना बना सकता हूँ । विद्याधर मेरे आधीन हैं, जो कोई मेरी सत्ता को स्वीकार न करे उसे यमलोक पहुँचा सकता हूँ। सारा विश्व मेरी कृपा का इच्छुक है। मुझे किसी से भय नहीं, बल्कि दूसरों के लिए मैं ही साक्षात् भय हूँ। मेरे नाश का स्वप्न देखने वाले मूर्ख हैं। मेरे वैरी के जन्म की घोषणाएं कपोल कल्पित सिद्ध हो चुकी । अतएव अब मुझे क्या चिन्ता ?" इसी