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जैन महाभारत कुन्ती मौन रही।
विदुर ने फिर पूछा-"क्षत्राणी की अनायास ही ऐसे समय चेतना लुप्त यू ही नहीं हो सकती। फिर तुम तो वीर अर्जुन की मां हो। क्या कारण है इस प्रकार मूर्छित होने का ? क्या किसी रोग का प्रहार है, पर ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ ?" कुन्ती फिर भी मौन रही। ___ "क्या अजुन को कर्णं के मुकाबले पर जाते देख घबरा गई? तुम घबरा गई , यह तो लज्जाजनक बात है ?" विदुर बाले।
अब तक भी कुन्ती मौन थी।
तब विदुर ने जोर देकर कहा-"क्या इस मूर्छा का रहस्य हम नहीं जान सकते "
रहस्य की बात ने कुन्ती के हृदय पर आघात किया, वह आहत हो तुरन्त बोल पड़ी-"मैं इनकी माता जो हूँ " .
"क्या कहा ?' विदुर ने पुनः शब्दों को सुनने के लिए पूछा। जैसे जो उन्होंने सुना था, जानना चाहते थे कि क्या वही शब्द कुन्ती के कण्ठ से निकले थे जब कि वे कर्ण के रहस्य को सूत के मुँह से सुन चुके थे तो ऐसी दशा मे यह शब्द बहुत अर्थ रखते थे। - कुन्ती भी वे शब्द निकलते ही, स्वय घबरा गई, अनायास ही वे शब्द उसके मुख से निकले थे, उसे अपनी जिह्वा पर क्रोध भी आया और एक क्षण के लिए उसने अपनी जिह्वा को दातों में दबा दिया। उस जिह्वा को जो अनजाने मे ही बड़े यत्न से छुपाये रहस्य पर से
आवरण उठाने का अपराध कर रही थी और सम्भल कर बोली -हाँ मैं मां हूँ। मां पृथ्वी के समान होती है मुझे आश्चर्य हो रहा है कि वह आचार्य इन कुमारों को यहाँ कला दिखाने के लिए लाए हैं या युद्ध राने ? मुझे दुख है कि आप जैसों के रहते यह सब कुछ हो रहा है । युद्ध में चाहे अजुन मरे या कर्ष, मुझे एक के लिए तो शोक करना ही होगा । कर्ण किसी अन्य का पुत्र हुआ तो क्या ? मैं तो अपना ही पुत्र मानती हूँ । इस प्रदर्शन स्थल में यह युद्ध होना अच्छा नहीं है। देखो । वे दोनों मल्ल युद्ध करने को तैयार करने को तैयार खड़े हैं और वह दुर्योधन कैसी आग लगा रहा है ? अपनों के यह लक्षण देखकर भी क्या कोई अपने पर संयम ठीक रख सकता है ?"
कुन्ती की बात सुनकर गांधारी भी बोल पड़ी-"सचमुच दुर्योधन कुलांगार है जो इस प्रकार आग लगा रहा है।" उस का मुह पिचक
कुन्ती भी वे से निकले थे। अपनी जिह्वा का से छुपा