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कर्ण की चुनौती
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अपने पेट में पाला है । कुन्ती का जी चाहा कि वह दौडकर उन दोनों के मध्य दोवार बन कर खड़ी हो जाय, इनकी आंखों से अज्ञानता का पर्दा हटादे, उन्हे बतादे कि वे एक ही वृक्ष की दो शाखाए हैं, उन्हें वह उनकी मा है जो यह सहन नहीं कर सकती, कि उसकी आखों के दो तारे आपस में टकरा जाय । किन्तु लोक लज्जा ने उसकी इच्छा का गला घोंट दिया, वह यह सोचकर ही घवरा गई कि लोग क्या कहेंगे, लोग उसे कलंकिनि के नाम से याद करेंगे सभी उसे पापिन कहेंगे और क्या पता कि उसके वीर पुत्रों की ही उसके सम्बन्ध में क्या धारणा हो जाय ? अतएव वह अपने मन की बात को क्रियात्मक रूप न दे सकी। उसके मन में आया कि चीख कर कहे कि इस अनर्थ को रोको, कर्ण और अर्जुन को आपस में मत लड़ने दो, पर उसी क्षण उसके मन में प्रश्न उठा कि लोग मेरे ऐसा कहने का कारण पूछेगे और अगर कहीं घबराइट में उसके मुख से सच्ची बात निकल गई तो ? इस-प्रश्न ने ही उसके कण्ठ तक आई बात को रोक दिया । फिर उस के मस्तिष्क में प्रश्न उठा, तूफान की भाँति, ज्वार भाटे की भाति आया यह प्रश्न कि फिर कैसे इस अनर्थ को होने से रोका जाय ? श्रीकृष्ण भी तो इस समय यहा नहीं हैं जिनके द्वारा यह संघर्ष, यह युद्ध, यह यह अनर्थ रुकवा सकती। कौन है यहा जिससे वह अपने हृदय की बात कह सके ? यदि वह इस युद्ध को न रुकवा सकी तो क्या पता उसके किस लाल का क्या हो जाये । एक विचित्र सी आशंका उसके मन में उठी, जिसके आघात से वह मूर्छित हो गई। उसके मूर्छित होने से पास बैठी महिलाओं में खलबली सी मच गई। विदुर को भी पता चला तो वे तुरन्त उसके पास पहुँचे । विज्ञ विदुर ने समझ लिया कि अर्जुन और कर्ण का मल्ल युद्ध होने की बात के समय कुन्ती के मूर्छित हो जाने के पीछे अवश्य ही कोई रहस्य है । उन्हें क्या मालूम कि
कर्णार्जुन सघर्ष लख कुन्ती हुई अचेत ।
वात्सल्य बंधन पडा हग न खुलने देत ।।
हवा करने लगे। उसे सचेत किया और धैर्य बंधाया, ज्यों ही पूर्ण चेतना कुन्ती को हुई वे पूछ बैठे "कुन्ती । अकस्मात् मूळ का क्या कारण है ?"