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शिष्य परीक्षा
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पिता को सम्मुख देख कणे उठ खड़ा हुआ, उसने पिता के पैर छुये और बोला- यह सब आपका ही प्रताप है" कर्ण की इस विनय शीलता से लोग प्रभावित हुए । वे कहने लगे-कर्ण विनयवान अवश्य है, पर रथवान का बेटा है, वीर है तो क्या हुआ, बिना यह सोचे कि यह राज्य काज चला भी सकता है, इसे राज्य देना ठीक नहीं जंचता ।"
भीष्म और धृतराष्ट्र को दुर्योधन के इस कार्य पर मानसिक क्षोभ हो रहा था वे इस बात से खिन्न थे कि दुर्योधन ने हम से विचार विमर्श किए बिना ही अग देश का राज्य कर्ण को दे दिया । इसने हमारी सम्मति नहीं ली, इसका अर्थ है कि वह हमारा सम्मान नहीं करता, वह सम्मान से भी गिर गया। यह हमारा अपमान नहीं तो
और क्या है । इस प्रकार सभी उपस्थित जन दुर्योधन की आलोचना कर रहे थे, पर उसके दुष्ट स्वभाव के कारण किसी ने उसे टोका नहीं। हाँ, भीम से चुप्पी न साधी गई, वह बोल ही पड़ा-"कुलांगार ! यह कर्ण तो सूत पुत्र है, इसके हाथ में तो चाबुक दे, इसके हाथ में तो घोडे की लगाम ही शोभा दे सकती है, राज्य नहीं।"
दुर्योधन भीम की बात सुनकर जल उठा, क्रोधाग्नि में जलते हुए उसने डाट पिलाई-"चुप रहो, देखते नहीं, कर्ण सूत पुत्र के समान नहीं किन्तु राजपुत्र के समान शोभा पा रहा है । भानु सूत, चारों ओर के वातावरण, आलोचना प्रत्यालोचना को देख सुनकर हडबडा उठा उसके मन में यह शका जाग उठी कि कहीं सूत पुत्र जान कर कर्ण से राज्य न वापिस ले लिया जाय, कहीं कर्णे और और उसके भाग्य का सितारा उदय होकर तुरन्त अस्त न हो जाय, अतः सच्चा वृत्तांत सुना दालने में ही उसने कर्ण का कल्याण समझा । वह दुर्योधन को सम्बोधित करते हुए बोला-"आप ठीक कहते हैं आप ज्ञानी हैं। वास्तव में कर्ण मेरा पुत्र नहीं है।"
दोधन ही नहीं सभी सुनने वाले चकित रह गए। सभी की आँखों में विस्मय छलकने लगा, वह बोला-"वास्तव में बहुत वर्षों पूर्व की बात है यमुना नदी में एक पेटी बही जा रही थी। धन के लालच में मैने पकड़ ली। खोलकर देखा तो उसमें एक बालक था। उसके