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हरि वश की उत्पत्ति महारानी पद्मावती महाराज सुमित्र की सेवा में जाकर अपने सब स्वप्नी का यथातथ्य वर्णन कर निवेदन करने लगी कि हे प्राणनाथ ।
आप कृपाकर बताएँ कि इन स्वप्नों का फल क्या और कैसा होगा? ___ महारानी के चौदह स्वप्नों का वृत्तांत सुनकर महाराज सुमित्र हर्प से गद्गद् होकर कहने लेगे कि
हे प्रिय । इन स्वप्नो का फल यह है कि तीनो लोकों के स्वामी भगवान् जिनेन्द्रदेव तुम्हारे गर्भ से जन्म लेंगे।
महाराज सुमित्र के इन अमृततुल्य वचनो को सुनकर महारानी पद्मावती का हृदय ऐसे आनन्द विभोर हो गया मानों चन्द्र किरणों के स्पर्श से कुमुदनी कुल विकसित हो उठा हो। अब तक वह जिस स्त्री-पर्यायको निकृष्ट समझती रहो उसे ही अब भगवान् तीथेङ्कर की माता के रूप में देखकर परम पवित्र समझने लगी। उसी समय देवेन्द्र वृन्द वन्दित भगवान् मुनिसुव्रत सहस्रार स्वर्ग से xच्यवकर माता पद्मावती क गर्भ मे आ विराजे । जिस समय भगवान् मुनि सुव्रत गर्भ में प्राय उस समय माता पद्मावती कुछ नीलिमा लिये हुए श्वत पयोघरों से शोभित विद्युत्प्रभाभरण से युक्त शरद् ऋतु के समान सुशाभित होने लगो।
यथा समय सवा नव मास में माता पद्मावती की कोख से माघ मास मे शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन श्रवण नक्षत्र में समस्त चराचर मात्र को थानन्दित करने वाले भगवान् मुनिसुव्रत ने अवतार लिया। भगवान् के अवतार धारण करते ही इन्द्रादि सभी देवगण भगवान् के दिव्य दर्शनों से अपने आपको कृतार्थ करने के लिये कुशाग्रपुर में आ पहुँचे । उन देवगणो ने नगर में प्रवेश कर भगवान और उनके माता पिता को बडे श्रद्धा से प्रणाम किया और भगवान के दिव्य दर्शनो से कृतज्ञ हो वे लोग अपने-अपने लोको को विदा हो गये।
अनेक प्रकार की वाल्य-लीलामो से अपने माता-पिता के मन को हरते हुए भगवान् ने यौवन में पदार्पण किया। इसी समय एक दिन वे अपने दिव्य प्रासाद पर बैठे प्रकृति-सुन्दरी की अनुपम शोभा निहार रहे थे कि उनके हृदय में ससार की नश्वरता की भावना समा जागृत
उध्व लोक में गरीर छोडकर मध्य लोक मे जीव का पाना च्यवन कहलाता । जिते लोक भाषा मे चूणा या चोगा भी कहते है।