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कर्ण की चुनौती
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पर प्रजाजन बैठकर प्रदर्शन देख सकें, विद्या प्रदर्शन को देखने में कोई कठिनाई न हो, इसका ध्यान रखा गया । राज महिलाओं के बैठने की भी उचित व्यवस्था की गई और यह भी ध्यान रक्खा गया कि परीक्षार्थियों को भी किसी प्रकार की असुविधा न हो । ढोणाचार्य ने परीक्षा के लिए बनाई गई रगभूमि का इस प्रकार निर्माण कराया कि उसे देखकर उनकी कला कुशलता का भी पूरा परिचय मिल जाता था । उसमे विशेषता यह थी कि महिलाओं के बैठने के स्थान इस प्रकार बनाये गए थे कि वे तो सारे प्रदर्शन को भलि भांति देख सकती थीं, पर अन्य दर्शक उन्हें देखना चाहें तो उन्हें असुविधा होती, अपने स्थान से हटना पड़ता। बैठने के स्थानों का निर्माण इस प्रकार किया गया था कि बैठने वालो का स्थान देखकर ही परिचय मिल जाता था, कोई भी समझ सकता था कि कौन राज परिवार का व्यक्ति है और कौन राजकर्मचारी व कौन प्रजाजन । साथ में एक स्थान पर समस्त प्रकार के अस्त्र शस्त्रों के रखने का समुचित प्रबन्ध था जिन्हें सभी दर्शक देख सकते थे । वह स्थान इतना कला पूर्ण और चित्ताकर्षक बनाया गया था कि शस्त्रास्त्रों की प्रदर्शनी का रंग उपस्थित करता था कितने ही शस्त्र अस्त्र वहाँ रखा दिए गए थे जिनमें बहु मूल्य शस्त्र भी थे । मानो एक प्रकार से हस्तिनापुर का शस्त्रागार ही वहा आ
गया था ।
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मण्डप बन गया, परीक्षा का समय सन्निकट आ गया जनता की भीड उमड पडी । द्रोणाचार्य जैसे प्रख्यात श्राचार्य से शिक्षा पाए राजकुमारों का कला कौशल भला कौन न देखना चाहता ? नर नारी, बालक वृद्ध, सहस्रों की सख्या में उमड पड़े । मानों दर्शकों का सागर उमड़ पड़ा है। चारों ओर नर मुण्ड ही दिखाई देते थे । राज परिवार के लोग भी उपस्थित हो गए। राज्य कर्मचारी सभी को पूर्व निश्चित योजनानुसार उनके लिए नियुक्त स्थान पर बैठाते जाते । चारों ओर हस्तिनापुर सिंहासन की पताकाए लहरा रही थीं । जब सभी लोग अपने अपने उपयुक्त स्थान पर बैठ गए। तो द्रोणाचार्य अपनी शिष्य मडली को अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित करके परीक्षा स्थल में लाए । शिष्यों की भी पूरी एक सेना सी थी । द्रोणाचार्य के मुख पर अपनी शिष्य