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जैन महाभारत दुसरे राजकुमार पश्चाताप करने लगे कि अर्जुन ने बाजी मारली। यदि वे ही वचन दे देते तो गुरु के प्रिय बन जाते । दुर्योधन भीतर ही भीतर जलता रहा। कर्ण के हृदय में भी ईर्ष्या धधक उठी और अश्वस्थामा तो चिढ़ गया। पर युधिष्ठिर, भीम, नकुल और सहदेव को इतनी ही प्रसन्नता हुई जितनी अजुन को । उन्हे गर्व था कि उनका भाई गुरुदेव का प्रिय हो गया है।
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