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द्रोणाचार्य
३५३ राज्य देने में कौन बढी बात है ? मैं अपनी प्रतिज्ञा अवश्य निभाऊगा, तुम विश्वास रखो। ___ "द्र पद । लोग यू कहेंगे कि ब्राह्मण पुत्र ने अपने चातुर्य से क्षत्री पुत्र मे राज्य ले लिया। कोई कहेगा कि द्रोण ने मित्रता ही राज्य ठगने के लालच में की थी। मैं ऐसी किसी बात को उत्पन्न नहीं होने देना चाहता जो हमारे और तुम्हारे पवित्र स्नेह पर धब्बा लगाती हो, तुम नहीं समझते द्र.पद् । राज्य, सम्पत्ति, नारी आदि झगड़े का कारण बन जाती है। इन के कारण मित्र परस्पर वैरी बन जाते हैं, भाई भाई के प्राण ले लेता है । ऐसी वस्त को मैं अपनी मित्रता के बीच में नहीं लाना चाहता जिसके कारण कभी भी एक हुए दो दिलों में कोई भी "अन्तर पाने का भय हो । अत. तुम राज्य की बात लाकर अच्छा नहीं कर रहे ।" द्रोण ने द्र पद को आने वाले सकट की चेतावनी दी। ___ "नहीं द्रोण तुम भूल रहे हो, सम्पत्ति और राज्य के प्रश्न पर झगड़ते ये हैं जिन्हें यह पता नहीं कि सम्पत्ति या राज्य आनी जानी वस्तु है, इनका मित्रता और मनुष्यत्व के सामने कुछ भी तो मूल्य नहीं मैं अपने उस मित्र के लिए राज्य देने की प्रतिज्ञा कर रहा है जिसके लिए मैं अपने प्राण तक दे सकता हू" उत्साह से 5 पद बोला।
मैं तो नहीं चाहता कि ऐसी प्रतिज्ञा करो, पर जब तुम्हारी हठ है, तो जो सोचो करना । हाँ एक घात भवश्य कहूंगा कि मुझे भूल मत जाना" द्रोण घोले ।
"तुम चार बार ऐसी बातें करके मेरा दिल क्यों दुखाते हो। विश्वास रखो, सोते जागते, हर समय तुम्हारी मधुर याद सताया फरेगी । द्र पद ने विश्वास दिलाया। __ -और दोनों ने एक दूसरे से अश्रधार बहाते हुए विदा ली। दोनों अपने अपने घर चले गए। X X
X पांचाल देश के राजा वृद्ध हो गए थे और अब वे भार मुक्त होना पाहते थे। उनका पुत्र द्र पद जव विद्या और कला में पारगत होकर पहा पहुचा, उन्हें बहुत सन्तोष हुआ और राज्य भार उसे सौंप दिया। उपद राज्य सिंहासन पर बैठ गया और अपने राज्य का संचालन कर लगा।