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जैन महाभारत
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गुरु भक्ति कुछ भी तो नहीं। मुझे आशीर्वाद दीजिए कि मैं भी इतना ही गुरु भक्त सिद्ध हूं और आप को सन्तुष्ट कर सकू ं।"
अर्जुन सोचने लगे "एकलव्य । महान् त्यागी गुरु भक्त है इसी लिए उस ने इतनी विद्या प्राप्त की यदि मैं भी गुरुदेव के लिये तन, मन, धन बल्कि अपना सर्वस्व अर्पित कर टू' तो एकलव्य की श्रेणी को पहुंच सकता हूँ | इतना सोच कर वे उस दिन से गुरु सेवा पूर्ण श्रद्धापूर्वक करने लगे और गुरुदेव की समस्त कृपा दृष्टि उन्होने अपने पक्ष में कर ली ।