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विरोध का अंकुर
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भी याद आई जो उन्होंने शब्द बेध की शिक्षा देते हुए कही थी कि "अजुन । अथ विश्व में कोई भी ऐसा धनुर्धारी नहीं, जो तुम्हारा मुकाबला कर सके " किन्तु वह वीर जिसने इस कुत्ते का मुह अपने बाणों से भरा है, वह वास्तव में ऐसा है कि उसका मुकाबला करना मेरे बम की बात नहीं है । - वह सोचने लगे, कुत्त े का मुद्द भरा कैसे गया ? - मस्तिष्क पर जोर देने से वात समझ मे आ गई । अवश्य ही कुत्ते के भौंकते समय उसकी ध्वनि को लक्ष्य बना कर वाण चलाये गए होंगे। पर वह है कोन ?"
चारों ओर दृष्टि उस वीर की खोज करने लगी । पर कोई मानव दिखाई नहीं दिया | वे उसकी खोज में उस ओर चल पड़े, जिस ओर से कुत्ता प्राया था । कुछ ही दूर जाने पर उन्हे एक व्यक्ति दिखाई दिया । वह था एक भील, उसके बाये हाथ मे धनुष और दाए में बारण थे, कमर से तरकश वधा था । उसका शरीर एक दम काला था, मु ह नीचे को था, नाक का अग्रभाग बाण की नोक के समान था, नेत्र अरुण थे, वाल चढ़े हुए, भोजपत्र का लगोट पहने था । अर्जुन ने निकट जाकर पूछा "भद्र | क्या मै जान सकता हॅू कि आप वही तो नहीं है जिसने कुत्ते का मुह बाणों से भर दिया है ।"
विनम्रता पूर्वक वह वाला - "जी हां। आपका विचार सही है" अर्जुन ने उसे एक बार ऊपर से नीचे तक देखा । वोले -"आप की कला प्रशसनीय है । आपका शुभ नाम ?”
"एक लव्य"
"कुत्त े का मुंह बाणों से भरने का कारण "
"मैं शान्तचित्त कहीं जा रहा था। एकाग्र चित्त होकर अपने गुरु का ध्यान कर रहा था कि वह सिंह समान भयानक कुत्ता भयानक शब्द करता हुआ आता दिखाई दिया । कितनी ही ढेर तक भौंकता रहा । मुझे इसका भौकना न सुद्दाया और उसका मुंह बाणों द्वारा भरकर चुप कर दिया ।" भील युवक ने बताया ।
' आपके गुरु कोन है ?"
" जी मेरे गुरु द्रोणाचार्य है । मैंने उन्हीं के पुण्य प्रसाद से यह विद्या सीखी हैं"
भील युवक की बात सुनकर अर्जुन को और भी अधिक