________________
३२८
जन महाभारत
परास्त ही करना है। पर जब यह हैं ही गोबर गनेश तो फिर डहेंगे नहीं तो और क्या करेंगे। यह तो हाथ लगाते ही लुढ़क पड़ते हैं" । ___ भीम ने तो सीधे स्वभाव से नम्रता पूर्वक बात कही थी उसे क्या पता था कि उसका एक एक शब्द दुर्योधन को वाण की भाति चुभ रहा है । दुर्योधन क्रोधित होकर बोला "इतनी डींग मत हांक । मुझ से लड़ेगा तो लड़ना भिड़ना सदैव के लिए भूल जाएगा, अपने हाथ पॉव की खैर मना । तू भी गोबर गनेश से कुछ ज्यादा नहीं"
"भ्राता जी । आप तो रुष्ट हो गए। कुश्ती ही तो लड़नी है कोई युद्ध थोड़े ही करना है।" भीमसेन किंचित मुस्करा कर बोला।
"अच्छा, पहले ही से डरने लगा " दुर्योधन ने व्यग किया। "तनिक सामने आइये । सब कुछ पता चल जायेगा।"
"अच्छा तो फिर आ जा" दुर्योधन ने जघा पीटते हुए कहा, तू ने मेरे भाइयों को परेशान कर रखा है आज सारा नजला ढीला करता हूँ। ___ "भ्राता जी । आप को भ्रम हो गया, भीम फिर भी नम्रता से बोला, मैं तो सभी कौरव कुमारों को अपने चारों पाण्डव भ्राताओं के समान ही समझता हूँ। मैं किसी को दुःख पहुचाने की नियत से तो नहीं खेलता। हाथी क्रीड़ा में वृक्ष तोड़ देता है तो कहीं वह वृक्ष का शत्रु थोड़े ही होता है।" _ 'कायर का स्वभाव ऐसा ही होता है। वीर पुरुष को सामने देखा और गिड़गिड़ाने लगे" दुर्योधन ने आँखें तरेर कर कहा। ___ "भ्राता! आपको अभिमान और अहंकार से बोलना शोभा नहीं देता। आप से कुश्ती लडने को मैने कब इंकार किया। सामने ता हूँ श्रा जाइये । अभी ही पता लग जायेगा कौन कायर और कौन वीर है। भीम गम्भीरता से बोला।
"भीम ! जवान सम्भाल कर बात कर। तू यह मत भूल कि आज दुर्योधन से वास्ता पड़ा है, छोटे बालकों से नहीं।" ___"आप तो भभक रहे है, ओह । आप वास्तव मे लड़ने को तैयार नजर आते हैं, पर तनिक सोच समझ कर आगे बढ़िये कहीं पछताना ही न पड़े " भीम ने व्यग कसे । दुर्योधन जघा और भुजदंड पीटता