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विरोध का अकुर फिर भीम ने सभी कौरवों को कुश्ती लड़ने को निमत्रित किया, वारी बारी से कौरव उसके साथ मल्ल युद्ध के लिए डटने लगे । पर वह किसी को दो तीन मिनट से अधिक न लगने. देता, प्रत्येक को परास्त कर देता । वीच बीच में रुक रुक कर दण्ड बैठक भी लगता रहता । कोई कौरव कुमार उसको परास्त करने का बीड़ा उठाकर अकडता हुआ उस से जा भिडता तो भीम एक ही दाव में पटक कर अट्टहास करने लगता। इस प्रकार सभी को वह पटक चुका, पर दुर्योधन दूर खडा हुआ ही भीम को देखता रहा । इतने में भीम को क्या सूझ कि वह दूर से दौड़ता हुआ आया और किसी कौरव से आकर टक्कर मारता, कोरवों को ढेले की नाई गिरता और भीम भागा चला जाता। यह दृश्य देखकर दर्योधन के हृदय में दुष्टता अकुरित हुई । वह सोचने लगा कि भीम अपने बल से मेरे समस्त भाइयों को परेशान करता है। वह अपनी उद्दण्डता से सभी कौरवों को पीड़ा पहुँचाता है । उसे अपने बल पर अभिमान है। यह हमारा शत्रु है”। ___ यह सोच कर दर्याधन दात पीसने लगा। उसके नेत्रों में लाली आ गई और भीम को हराने का निश्चय कर लिया । उसने ललकार कर कहा "ओ भीम ! इन बेचारों पर क्यों बेकार रोब दिखा रहा है। अपने से छोटे कुमारों को परेशान करता है किसी बरावरी के कुमार से अभी तेरा पाला नहीं पड़ा । वरना सारी अकड भूल जाता तेरी मुजाओं में बहुत खुजली उठ रही है । आ मुझ से कुश्ती लड़ तब तुझे पता चलेगा कि वीरता किसका नाम है | आज तेरी सारी अकड ढीली किए देता हूँ।"
"आपको मना किसने किया है, आइये लगोट खीच कर मैदान में तो उतरिये । या यूं ही गीदड़ भवकी दिये जाओगे" भीम बोला।
"ऊण्ट जब तक पहाड के नीचे से नहीं गुजरता, तब तक वह यही समझता है कि मुझ से ऊचा तो ससार मे कोई नहीं, दर्योधन कपड़े उतारता हुआ बडबड़ाता गया, मैं तो अब तक समझता था कि तू खुद ही होश में आजायेगा, पर तेरा तो अहकार बढ़ता जा रहा है" ___ "भ्राता जी । मैं तो मनोरजन के लिए क्रीड़ा किया करता हूं, भीम ने नम्रता पूर्वक कहा, अहकार तो रच मात्र भी मुम मे नहीं है । न कभी मैं इस विचार से ही किसी कुमार से कुश्ती लडा हूँ कि मुझे उसे