________________
३०४ mammarrrrrrrrrrrrrrrrrrr
जैन महाभारत
NNNNA
"देवि | अपनी धृष्टता के लिये क्षमा प्रार्थी हूँ। मैं हस्तिनापुर नृप पाण्डू हूँ और अपनी विलक्षण गुणवान मुद्रिका के सहारे कुन्ती की खोज मे आया हूँ।"
पाण्डू की बात सुन कर कुन्ती को अपार हर्प हुआ। वह किन्नर देव नहीं बल्कि उसके स्वप्नो का राजा पांडू था। कुन्ती ने उन्हे नमस्कार किया। “कहिए क्या आज्ञा है'' हर्ष और लज्जा के सयुक्तभाव लिए कुन्ती ने पूछा।
"तो क्या मै किन्नर देवांगना को नहीं, कुन्ती का देख रहा हूँ ?"
कुन्ती ने सिर हिला दिया-फिर क्या था पाडू ने दासी को दूसरी ओर जाने का सकेत दे, आगे बढ़ कर कुन्ती को अपने बाहुपाश मे बांध न्तिया।
"मैं आपको हृदय से स्वीकार कर चुकी हूँ। फिर भी अभी कुमारी हूँ। अपने कौमार्य की रक्षा करना मेरा कर्तव्य है। अतः आप मेरे साथ कोई ऐसी बात न कीजिए जो कौमार्य की पवित्रता को भग करती हो" कुन्तो ने हाथ जोड़कर विनय पूर्वक कहा "कुन्ती | जब से चित्रकार द्वारा मैंने तुम्हारे रूप की प्रशसा सुनी है, मैं तुम्हारे रूप पान के लिए व्याकुल हूं, कामासक्त पाडू बोले, और आज जब तुम्हारा रूप मैं अपने नेत्रों से देख रहा हूं मेरा मन चचल हो उठा है । मै तुम्हारे सहवास के लिये आतुर हो चुका हूँ। इसमे गलती मेरी नहो, तुम्हारे रूप की है । तुम्हारे मादक रूप ने मुझे उत्तेजित कर दिया है । मेरे हृदय की धड़कनों की ध्वनि सुन रही हो ? एक एक धड़कन में, कुन्ती तुम्हारे नाम के दो शब्द गूज रहे है। मेरी हृदय गति तीव्र हो गई है। अब मैं अपने काबू से बाहर हो गया हू"
यद्यपि कुन्ती का मुखमण्डल तमतमा आया था, उसकी स्वांसों में गर्मी आ गई थी, तथापि स्त्री सुलभ लज्जा और सकोच, तथा कौमार्य की मर्यादा को अपने ध्यान मे रखकर वह बोली "मैं अपने हृदय को चीर कर तो नहीं दिखा सकती । पर आप विश्वास रखें आपके लिए मेरी धडकनों मे अपार प्रेम है। मैं आपकी हो चुकी हूं। पर अपने कौमार्य की रक्षा के लिये मै बाध्य हूँ। यदि इस समय आपके साथ संगम करू गी तो संसार में बड़ी अकीर्ति फैल जायेगी। मै बदनाम हो जाऊगी । कुल कलकनी के नाम से पुकारी जाऊंगी। आप विधिपूर्वक मुझ से विवाह कर लीजिए।