________________
कुन्ती और महाराज पाण्ड
E
नहीं मागते, तो हम तुम्हें निहाल कर देंगे । नृप की बात सुन कर चित्रकार को अपार हर्ष हुआ । थोड़ी देर तक नृप उस चित्र को देखते • रहे और देखते ही देखते उन के मुख से निकल पढा ।" यस उन्हें एक ही चिन्ता और रह गई । कुन्ती को ऐसा वर मिले जो अपने रूप और पॉप में अद्वितीय हो । हम चारों ओर खोज चुके । राज्य परिवारो में अभी तक हमें ऐसा कोई राजकुमार या नृप दिखाई नहीं दिया जिम के साथ कुन्ती जैसी रूपवती कन्या का विवाह किया जा सके।" विवाह की बात सुन कर कुन्ती के मुख पर स्वाभाविक लज्जा छा गई ।
किन्तु चित्रकार बोल उठा । "कुन्ती के विवाह के सम्बन्ध में मुझे बोलना तो नहीं चाहिए। पर अभय दान दें तो कुछ कहूँ ।"
"हा, हॉ, निर्भय होकर कहो "
चित्रकार समस्त साहस बटोर कर कहने लगा -
"महाराज अब की बार मुझे एक रूपवान और महावली नृप के दर्शन हुए कि आज तक कहीं ऐसा व्यक्ति नजरों से गुजरा ही नहीं । उसका रंग सेव के समान है । उसके मस्तक पर तेज विद्यमान है । उसके नेत्रों में अलौकिक चमक है । वीरता उसके मुख मण्डल पर झलकती है । हर व्यक्ति उसकी ओर आँख उठा कर देखने का साहम नहीं कर सकता । वह कला का प्रेमी और गुणी पुरुषों का हितैषी है। वह अपने रूप में अद्वितीय है । बम यू समझ लीजिए कि कुन्ती और उस नृप को पास पास खड़ा कर दिया जायेगा तो ऐसा प्रतीत होगा मानो यह दोनों देव और देवागना स्वर्ग से अभी अभी अवतरित हुए हैं। -- सबसे मुख्य बात तो यह है कि कुन्ती का यह चित्र देख कर वे हर्प विभोर हो गए । बात वह है कि उद्यान में बैठा इस चित्र पर अन्तिम कार्य कर रहा था कि वे वहीं आ धमके और बहुत देर तक चित्र देख पर मुझ से कह बैठे कि आपकी यह कल्परा प्रशसनीय है । अप्सरा भी ती कदाचित इतनी स्पयती नहीं हो सकती। जब मैन उन्हें पताया कि यह कुन्ती का चित्र है तो वे विस्मय पूरा नेत्री से देखने लगे । उनके नेत्र पता रहे थे कि कृती के चित्र ने ही पूरी ह •ादित पर लिया है।"
1
इसी प्रकार चित्रवार ने पाह की भूरि भूमि की। एन्टी