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जैन महाभारत "बेटा । तुम में आत्मबल है। तुम महान हो । तुम्हे किसी के आशीर्वाद की आवश्यकता नहीं" ।
शान्तनु का विवाह इसके उपरान्त बहुत ही ठाट बाठ से सम्पन्न हुआ। सत्यवतो को प्राप्त करके महाराज शान्तनु इतने प्रसन्न हुए मानो उन्हें स्वर्ग मिल गया हो। उन्होंने सोचा कि जब गगा का पुत्र इतनी भीष्म प्रतिज्ञा कर सकता है तो क्या मै शिकार न खेलने की प्रतिज्ञा नहीं कर सकता ? अवश्य कर सकता हूँ। क्यो न इस प्रतिज्ञा के द्वारा पवित्र गगा को भी अपने महल मे ले आऊं? उन्होंने यही सोच कर शिकार न खेलने की प्रतिज्ञा की। किन्तु गंगा उस समय तक जिनार्चन में लग निवृत्तिभाव धारण कर चुकी थी। ले आये।
सत्यवती से दो वीर पुत्रो ने जन्म लिया । जिनमे से एक का नाम चित्रांगद और दूसरे का विचित्र वीर्य था । उन दोनो राजकुमारों का पालन पोषण विशेष ठाठ बाट के साथ हुआ ताकि सत्यवती को कभी यह शिकायत न हो सके कि उसके पुत्रो के साथ उपेक्षा भाव बरता जा
____महाराज शान्तनु आयु के अन्तिम चरण में श्रेष्ट एव पवित्र जीवन व्यतीत करने लगे। उन्होंने समस्त प्रकार के व्यसन त्याग ही दिये थे वह धर्म ध्यान मे रहने लगे और उन्हीं त्यागमय कार्यों के द्वारा वे इहलोक लीला समाप्त करके स्वर्ग मे गए।
भीष्म का भ्रातृत्व भीष्म प्रतिज्ञा के उपरान्त गांगेय कुमार (भीष्म) ने अपना जीवन त्यागमय बना लिया, वे गृहस्थ जीवन मे रहते हुए भी धर्म ध्यान और सत्कर्मों में अपना समय व्यतीत करते । महाराज शान्तनु की मृत्यु के उपरान्त भीष्म को प्रतिज्ञा के अनुसार सत्यवती के पुत्र चित्रांगद को को राज्यसिंहासन पर बैठाया गया। वह सिंहासन पर बैठते ही अपने राज्य की सीमाओ का विकास करने और भरत क्षेत्र मे एक क्षत्र राजा कहलाने के लिए उत्सुक रहने लगा। उसने नीलॉगद भूप पर आक्रमण करने का बोडा उठाया। भीष्म को जब इस निर्णय की सूचना मिली, उन्होंने तुरन्त चित्रांगद को परामर्श दिया कि वाहे जो हो युद्ध लिप्सा को त्याग दो । रक्त की नदियाँ बहाने में कोई लाभ नहीं है । शॉति पूर्वक राजपाट सम्भालो शुभ कर्मों से अपनी कीर्ति का प्रसार करो।