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भगवान् नेमिनाथ
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प्रभु कहाँ है, जब उसे उनकी क्रीडा का पता चला वह तुरन्त अन्य देवताओं के साथ भगवान की बाल्य क्रीडा लीला देखने चल पड़ा। वहां आकर देवतागण उनके पास खेलने लगे। कोई अगुली पकड कर उन्हें चलाता, कोई उनके चारो ओर नाच कर उनका मन प्रसन्न करता, कोई हसता और इसाता, कोई गोदी लेकर कूदने फादने लगता। इन्द्र वोला-"प्रभु आयु में कितने ही छोटे सही, उन का शरीर कितना ही छोटा सही, पर उनमें है अपारबल ।" ___एक देवता को यह बात स्वीकार न हुई। उस ने प्रभु को गोद में उठा लिया और आकाश की ओर ले चला, स्वर्ग ले जाने के लिए। प्रभु ने जब अवधि ज्ञान से भाप लिया कि यह देव मुझे छलने आया है, उन्होंने पैर का अगूठा उसके ऊपर जमा दिया। जैसे पूरी पर्वत शिला ही उसके शरीर पर श्रा पड़ी हो, भार से देव दबने लगा
और वह पीड़ा के मारे चीत्कार करने लगा। सोते सिंह को ठोकर मार कर जगाने और अहि के मुख में हाथ डालने वाले को पीड़ा के अतिरिक्त और क्या मिलता है, देव ने प्रभु को छेडा था वह भी अपने किए का फल भोगने लगा। देव के चीत्कार सुन कर इन्द्र दौड आया और बोला-प्रभो । आप इस मूखे को क्षमा कर दें। आप की शक्ति पर इस ने सन्देह किया। यह इस की भारी भूल थी।'
इन्द्र की विनती स्वीकार कर प्रभु ने पैर का अगूठा हटा लिया, तव देव के प्राण में प्राण आये । इन्द्र ने प्रभु को लाकर पालने में सुला दिया और सभी देवगण इन्द्र के नेतृत्व में भगवान् की स्तुति करके सुरधाम चले गए।४ ___X भगवान् नेमिनाथ जी का पूरा जीवन चरित्र जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में पढिये । कल्प सूत्र में भी यह वर्णन मिल सकता है ।
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