________________
महाभारत नायक बलभद्र और श्रीकृष्ण
२५६
---"कौन ?" "कोई नहीं "कोई तो है" वसुदेव मौन रह गए। "यह ताले कैसे टूट गए " उग्रसेन ने कहा। वसुदेव समझ गए कि उग्रसेन को बताए बिना पीछा नहीं छूटेगा। रात्रि के समय उसे चुप करना ही श्रेयस्कर है। अतएव वे धीरे से बोले-'घबराइये नहीं ताले जिसके लिए टूटे हैं, वह एक पुण्यात्मा है, कन्हैयालाल, जो कस का काल है, और आपकी विपत्तियों का सहारक।
आपका मुक्तिदाता।" __उग्रसेन जो मुनि की भविष्यवाणी जानते थे । बहुत प्रसन्न हुये। उसने पुण्यात्मा को बारम्बार आशीर्वाद दिया और बोला-"धन्यधन्य देवकी, धन्य वसुदेव।"
तब वसुदेव धीरे से वहाँ से खिसक गए। उग्रसेन को आत्मविभोर होते छोड गए । नगरी की समाप्ति के उपरान्त जगल आ गया, भयानक बन, जिसमें हिंसक पशु दहाड़ रहे हैं, कहीं सिंह गर्जना है, कहीं. हाथी की चिंघाड सारे वन का हृदय कम्पित कर रही है । चारों ओर भयानक शब्द हो रहे हैं, नन्हीं नन्हीं बू दें पड रही हैं, ऊबड़ खाबढ़ रास्ता है, पर तड़ित बारम्बार एक भयानक ध्वनि के साथ रास्ते को प्रशस्त कर देती है। वसुदेव इस भयानक वातावरण को चीरते हुए तीव्र गति से चले जा रहे हैं। उन्हे न सिंह गर्जना ही भयभीत कर पाती है, न हाथियों की चिंघाड़ ही। उन्हें यह भी पता नहीं चारों ओर क्या है ? कहां हिंसक पशु है, कहाँ विषेले कीड़े फुकार रहे हैं, वे तो इस चिन्ता में कि कहीं पहरेदार न जाग उठे तेजी से पग उठाते हुए जा रहे है।
आगे यमुना नाग की भांति टेढ़ी-मेढी बह रही थी। आज उसका हिया भी गद्गद् हो रहा है, वह भी हर्ष विभोर होकर अपने आपे में नहीं है। तरुण तरगें किलोल कर रही हैं। किनारों तक भरा हुआ अथाह जल बहता चला जा रहा है, साय साय की ध्वनि आ रही है, लहरें उछल रही हैं । मानो आज यमुना अपने यौवन पर है, उसका हृदय प्रसन्नता के मारे उछल पड़ा है, उबल पड़ा है। वह मस्त होकर