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कनकवती परिणय
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की कि जो इस हाथी को वश में कर लेगा उसे उसके मन चाही वस्तु पुरस्कार में दी जायगी ।
नल ने देखते ही देखते उस मदोन्मत्त हाथी को वश में कर उसे आलान-स्तम्भ पर जा बाँधा । हाथी को इस प्रकार वश में कर लेने से उनकी चारो ओर ख्याति हो गई। अब तो महाराज ने बड़े प्रसन्न होकर उनसे पूछा कि गज को वश में करने के सिवा कुछ और भी विद्या तुम जानते हो ?
इस पर नल ने उत्तर दिया । महाराज मुझे पाक शास्त्र का भी थोडा बहुत ज्ञान है यह कह कर नल ने महाराज के आग्रह से सूर्य के ताप में ही ऐसे दिव्य पदार्थ बनाकर खिलाये कि महाराज आश्चर्य चकित हो उठे ।
अब तो दधिप की जिज्ञासा और कौतुहल भावना और भी जागृत हो उठीं । वे मन ही मन सोचने लगे कि पाक विद्या में ऐसा निपुण तो नल के सिवा कोई नहीं है । पर कहाँ तो देवोपम सुन्दर महाराज नल और कहां ये काला कलूटा कुवडा । यही सोच वह चुप हो रहे, पर फिर भी उन्होंने पूछा कि अरे भाई तुमने यह पाक कला कहा से सीखी है और तुम कौन और कहाँ से आये हो ? मुझे अपना सच सच सारा वृत्तान्त सुनाकर मेरी उत्सुकता शान्त करो । तब नल ने कहा कि मैं महाराज नल के यहां रसोइया का काम करता था, उन्हीं की कृपा से मुझे यह विद्या प्राप्त हुई है, तब तो महाराज दधिपर्ण और भी प्रसन्न हुए, उन्होंने उसे एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ पाँच सौ गॉव और अनेक वस्त्राभूषण प्रदान किये नल ने पांच सौ गाव छोड़कर बाकी सब वस्तुएँ दान दे दी ।
कुब्ज की ऐसी उदारता देख महाराज और अत्यधिक प्रसन्न होकर कहने लगे कि तुम और भी जो कुछ चाहो माँग सकते हो । तब उसने वर मॉग कर उनके राज्य में से मद्य मॉस और जूआ प्रचलन बिल्कुल बन्द करवा दिया । इन अद्भुत चातुर्य से प्रभावित हो महाराज ने कुब्ज को अनेक बहुमूल्य रत्न प्रदान कर अपने ही यहाँ रख लिया ।
कुछ दिनों पश्चात् महाराज दविपर्ण का कोई दूत भीमरथ के यहा गया और उसने उस कुब्ज की पाक कला की चर्चा की । यह सुन दमयन्ती ने कहाकि इस ससार में नल के सिवाय दूसरा कोई पुरुष सूर्य