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कनकवती परिणय
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mmmmmmmmm उसे एक भयकर राक्षस निगलने आया । दमयन्ती ने उसे कहा कि हे राक्षस तू मुझे नगलने का प्रयत्न मत कर, क्योंकि मेरा स्पर्श करते ही तू मेरे सतीत्व के तेज से भस्म हो जायगा, यह मै तेरे हित के लिए ही कह रही है । यह सुन वह राक्षस बहुत प्रसन्न हुआ और उसने कहा कि देवी मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूँ, तुम जो चाहो मैं तुम्हारी सेवा कर सकता है । यदि चाहो तो मै तुम्हे पिता के घर क्षण भर मे तुम्हे पहुचा दू । दमयन्ती ने उत्तर दिया कि मुझे पर पुरुष का स्पर्श किसी भी अवस्था में नहीं करना है इसलिए पिता के घर तो मैं अपने आप चली जाऊगी । पर तुम मुझे यह बताओ कि अब मेरे पतिदेव से भेट कब होगी।
इस पर उस राक्षस ने बताया कि बारह वर्ष के पश्चात् तुम्हारी अपने पति से भेट हो सकेगी।
इस प्रकार उस राक्षस से अपने पति के मिलने की निश्चित अवधि जान वह आगे चल पडी । चलते चलते उसके मनमें ऐसा वैराग्य का भावउदित हुआ कि अब मैं पिताके घर जाकर भी क्या रहूगी,यहीं कहीं तपोवन मे बैठ कर तपस्या में अपना समय काट दू । यह सोच वह पास ही पर्वत की गुफा में बैठकर तप में लीन हो गई। कुछ दिनों पश्चात् वह सार्थ भी वहाँ आ पहुचा उस सार्थ के सब लोगों ने भी उस के साथ वहीं रहने का निश्चय कर लिया । वहां रहने वाले ५०० सौ तपस्वियों को सम्यक ज्ञान प्राप्त हुआ, इसीलिए उस स्थान का नाम तापसपुर पड़ गया।
फिर एक दिन उन लोगों ने किसी पर्वत की चोटी पर एक दिव्य प्रकाश पुज देखा। उसे देखते ही सब लोग दमयन्ती से पूछने लगे कि देवी यह प्रकाश कैसा है, तब दमयन्ती ने उन्हें कहा कि सिंह केशरी नामक एक साधु को केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ है उसी के उत्सव में सम्मिलित होने के लिए इस पर्वत पर अनेक देव गन्धर्व आदि एकत्रित हुए हैं यह प्रकाश वहीं पर हो रहा है । यह सुनते ही सब लोगों की इच्छा उस उत्सव में सम्मिलित होने की हुई । दमयन्ती के तप तेज के प्रभाव से सब लोग उस पर्वत पर जा पहुँचे । वहां जाकर सब लोगों ने बडी श्रद्धा भक्ति पूर्वक केवल ज्ञानी मुनि सिंह कुमार को वन्दना की। उन्होंने भी सब को समयोचित आहेत धर्म का महत्व समझाया इस