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फनफवती परिणय
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में चूम रही थी कि उसे एक अत्यन्त सुन्दर राजहन दिखाई दिया ! कपूर और हिम के समान उसके निर्मल शुभ्र पंख, कोमल पल्लव के समान रक्ताभ, उमकी चोच और चरणों का देख राजकुमारी अत्यन्त विम्मित का उसे पकडने का प्रयत्न करने लगी। उसके गले मे बन्धी हुई किन्याग्गियो से ज्ञात होता था कि वह कोई पालतू हस है । राजसुमागे ने एस हस को देखते ही उत्सुकता वश पकड़ने का प्रयत्न किया । पुछ समय तो वह हम राजकुमारी की प. ड से बचने का प्रयत्न करता रहा । परन्तु मानव के सम्र्पक के अभ्यस्त उस पालतू इस को विवश हा राजकुमारी के हाथों में वढी हो जाना पड़ा। उसे पकडते ही राजकुमारी इस प्रकार प्रसन्न हुई मानो कोई अपूर्व निधि मिल गई हो । यह मन ही मन आनन्दित और मुग्ध होती हुई सोचने लगी कि जिस किनी ने ऐसे सुन्दर ईस को पाला है वह महाभाग भी कैसा सौभाग्यशाली रहा होगा । चलो पहले कहीं रहा हो, किसी ने कहीं पाला हो इस से मुझे क्या । इस समय तो मेरे हाथों में यह वन्दी है। अब तो इसे जन्म भर प्रपन में अलग न होने दूगी। यह सोचते वह उस भोलेभाले पक्षी को अपनी छाती से लगा उसके निर्मल शुभ्र सुकोमल पखों फो अपने सुकुमार कर से सहलाती हुई सखी से कहने लगी कि अरी पारशीले ! तनिक देख तो सही यह इस कितना सुन्दर और भोलाभाला । चलो इसे अपने महलों में ले चलें, वहाँ इसे सोने के पिंजरे में रखेंगे। यह फए कर फनकवती अपनी सखियों के साथ हस को लिये गए अपने राज्य नदलों में आ पहुची। वहाँ आते ही उसके लिए रत्नजटित सोने का पिंजरा मगवाया । ज्यों ही वह उसे पिंजरे में वन्द फरने लगी कि यह दस मनुप्य के समान स्पष्ट वाणी में राजकुमारी से पर प्रकार करने लगा
हैरागनुमारी | तुम घसी विदुषी और समझदार हो मै आज तुम्हें तुम्हारे दित पी घात करने के लिए ही यहा आया हूँ ! इमलिये विश्वास गसो में तुम से बातचीत किये बिना यहाँ से कदापि न जा3ा। मुझे पिजरे में यन्ट करने की आवश्यकता नहीं। तुम्हारे हायों में गुरु हाफर भी मैं जिम उद्देश्य से श्राया है उसे पूरा करके ही लागा। इस को इस प्रकार मनुष्य के समान बातचीत करते देख राजपमारी बलन्त विस्मित हुई, उसने 'आज तक किसी पक्षी को