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जैन महाभारत
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कनकबती के लिए अच्छा वर ढूंढने की चिन्ता सताने लगी । उसके लिए योग्य वर ह ढने में उन्होने रात दिन एक कर दिये । पर उनकी इच्छा के अनुसार सर्व गुण सम्पन्न वर ही कोई दिखाई नहीं देता । दूर देश-देशान्तरों मे भटक भटक हार गये किन्तु किसी ने भी आशा का सन्देश न सुनाया। राजा रानी दोनो को ही इस पुत्री के विवाह की समम्या ने अत्यन्त चिन्तित बना डाला । अन्त में उन्होंने अपने मन्त्रियों को बुला कर उनके समक्ष अपना हृदय खोलते हुए कहा कि "मन्त्रीगण ! आप तो जानते ही हैं, राजकुमारी कनकवती की अवस्था विवाह के योग्य हो गई है, उसके यौवन की दीप्ति से सम्पूर्ण देश जगमगाने लग गये हैं। युवती कन्या को अविवाहित रख उसके मनोवेगों को निरुद्ध करने के परिणाम स्वरूप माता-पिता को अत्यन्त चिन्तित रहना ही पड़ता है । अब आप लोग जानते ही है कि इस सम्बन्ध मे हम ने अपनी ओर से किसी प्रकार की कसर उठा नहीं रखी है। पर योग्य वर की प्राप्ति अपने हाथ मे तो है ही नहीं । उसका जहा जिस के साथ सम्बन्ध लिखा होगा उस ही के साथ तो होगा । भाग्य के आगे मनुष्य का भला क्या वश चल सकता है, अतः अब आप ही बतलाइये की इस समस्या का समाधान किस प्रकार हो ।"
मन्त्री ने हाथ जोड़ कर निवेदन किया कि महाराज कनकवती विधाता की सृष्टि मे अपूर्व सुन्दरी और विदुषी राजकुमारी है । उसको प्राप्त करने के लिए यक्ष गन्धर्व आदि सभी विद्याधर भूचर तथा राजकुमार लालायित हैं । इसलिए उसके विवाह के सम्बन्ध मे आपको प्रविक चिन्तित होने की कोई आवश्यकता नहीं । शीघ्र ही राजकुमारी के स्वयंवर का आयोजन कर इस चिन्ता से मुक्त हुआ जा सकता है ।
तदनुसार महाराज हरिश्चन्द्र ने कनकवती के स्वयंवर की तैयारिया शुरू कर दीं। देश-देशांतरों के राजा महाराजा आदि के पास स्वयंवर में भाग लेने के लिए निमन्त्रण पत्र भेजे जाने लगे। इधर पेटालपुरी नगरी को श्रमरपुरी समान सजाया जा रहा था। तो दूसरी थोर एक अत्यन्त सुसज्जित देव विमानोपम रमणीय विशाल का निर्माण किया जाने लगा। इस प्रकार स्वयंवर का बड़े धूमधाम से प्रायोजन होने लगा ।
इस ही समय राजकुमारी अपनी सखियों के साथ एक दिन उपवन