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जैन महाभारत
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मुनिराजो से सुना है कि वैताल दो प्रकार के होते है । शीत और उष्ण । उष्ण वैताल यदि किसी को हर कर ले जाता है ता समझना चाहिए का किसी शत्रु की जाल साजी है और शीत वैताल यदि ले जाये तो कोई किसी विशेष लाभ की प्राप्ति समझनी चाहिए । अतः यह तो शीत वैताल है । यह मेरा कुछ भी बिगाड़ नहीं कर सकता । अत वे चुपचाप देखत रह | इस समय वह वैताल वहां से अदृश्य हो गया । किन्तु उस के स्थान पर वही बुढ़िया वहा प्रकट हो गई । और मुस्करा कर उन्हें कहने लगी कि "पुत्र । वैताल तुझे यहां उठा लाया। इसके लिये बुरा मत मानना । तुमने मेरी उपेक्षा की इसी लिए तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार किया गया है । अब मै तुम्हें यहाँ से उड़ाकर वैताढ्य पर्वत पर ले जाऊगी ।"
अब तो वसुदेव के मुख से कोई शब्द ही न निकल रहा था । वे उस बुढ़िया के हाथों में कठपुतली की भाति विवश से पड़े हुए थे । वह उन्ह वहा से लेकर चलती बनों । मार्ग में जाते-जाते उसने वसुदेव को धतूरे का धुआं पीते हुए एक व्यक्ति का दिखा कर कहा कि वह ज्वलनवेग का पुत्र अगारक है | जिसने तुम्हें आकाश से पृथ्वी पर फेंक दिया था । और इस कारण यह उसी समय अपनी विद्या से भ्रष्ट हो गया था । अब यह यहा पर फिर अपनो विद्या की साधना कर रहा है । तुम्हारे जैसे श्रेष्ठ पुरुषा के दर्शन से इसका विद्या शोघ्र सिद्ध हो सकती है । इसलिये तुम इस दशन देकर कृतार्थ कर दा ता बहुत अच्छा होगा ।
वसुदेव ने उत्तर दिया कि आप इसे दूर ही रहने दें मै इसे देखना भी नहीं चाहता ।
यहाॅ से आगे बढ़कर उस बुढ़िया ने उन्हें तत्काल वैताढ्य पर्वत पर पहुंचा दिया। वहां पर सिंहष्ट्र राजा ने उनका बड़े उत्साह के साथ स्वागत कर उन्हे महलो में पहुँचा दिया और उनका अपनी पुत्री नीलयशा के साथ विवाह कर दिया ।
कुछ समय बीतने पर एक भयंकर वज्र के समान शब्द सुनाई दिया । इस शब्द को सुनकर जनता मे चारों ओर महान् कौलाहल छा गया । इस प्रकार लोग की व्याकुलता देख वसुदेव ने नीलयशा से पूछा कि यह क्या मामला है ? इस पर वह कहने लगी