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मात्तग सुन्दरी नीलयशा
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नाम सिंहाढ़ (द) है । उस रोज मात्तङ्ग वेष में नृत्य करती हुई नीलोत्पल के समान वर्ण वाली जो कुमारी तुम्हें दिखाई दी वह उसी प्रधान कुल मे उत्पन्न राजकुमार सिंहदष्ट्र की पुत्री नीलयशा है ।
यह तो आप जानते ही है कि उसने आपको देखते ही अपना हृदय आपके चरणों मे समर्पित कर दिय था । इसलिए आप अभी चलिए । और उसका पाणिग्रहण कर उसे जीवन दान दीजिये अन्यथा वह आप के विरह में तड़प तड़प कर प्राण दे देगी।
वृद्धा के इस वृतान्त को सुनकर भी वसुदेव ने उपेक्षा पूर्वक कहा कि इस समय तो मैं आप को कुछ निश्चित उत्तर देने की स्थिति में नहीं हूँ, कुछ समय मुझे विचार करने के लिए दीजिए। आप फिर कभी आने का कष्ट करें तो मैं इस विषय पर भली भाँति सोच समझ कर आपको अपने विचार सूचित कर सकूंगा ।
वसुदेव के इस उत्तर से बुढ़िया को निश्चय हो गया कि वह इस 'बात को टालना चाहता है । इसलिये उसने कुछ रोष प्रकट करते हुए कहा- तुम नहीं चाहते पर मैं चाहती हू । इसलिये तुम्हें मेरे पास आना होगा। अभी तो मैं जाती हॅू पर फिर तुम स्वय मेरे पास पहुचोगे ।
यह कहते-कहते वह बुढिया वहां से चली गई । इधर इन्हीं विचारों में मग्न वसुदेव को रात्रि में शैय्या पर पडे पडे बहुत देर तक नींद नहीं आई। नीलया और उसकी माता के कार्यों तथा व्यवहारों का स्मरण करते करते ज्यों ही उनकी आँख लगी कि उनका हाथ किसी ने पकड लिया । वे आँख मींचे मींचे ही सोचने लगे यह हस्त-स्पर्श तो अपूर्व है, गंधर्वसेना का तो ऐसा स्पर्श हो नहीं सकता । इस प्रकार सोचते हुए उन्होंने आंख खोल कर देखा कि एक भीषण रूप वाला वैताल उनकी बांह पकड़ कर उन्हे उडाये लिये जा रहा है । उनके देखते ही देखते वह उन्हें उठा कर कहीं दूर श्मशानों में ले गया । वहा एक बड़ी भयकर चिता धधक रही थी । उस चिता को देखते ही एक बार तो वे बहुत घबराये | किन्तु फिर विचार किया कि मैंने बचपन में साधु
१ शीत र उष्ण का अभिप्राय उनके शरीरस्पर्श से है । जिसके शरीर का स्पर्श उष्ण हो वह उष्ण वैताल और जिसका स्पर्श ठंडा हो उसे शीत वताल कहते हैं ।