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चारुदत्त की आत्मकथा
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नहीं, मुझे डर नहीं लगेगा आप चिन्ता न करे और मुझे ही अन्दर जाने दे।
यह सुनकर उसने मुझे चमडे के वस्त्र पहना दिये । और रासायनिक द्रव्यों से निर्मित एक ऐसी योगवर्ति या मसाल जलाई जो निर्वात कूप में भी नहीं बुझती थी। उस योग बत्ती के प्रकाश में उस साधु ने मुझे खटोले मे बैठा कर कुए मे लटका दिया । मै कुए के तले पर जा पहुँचा और हाथ लटका कर तुम्बी भर ली। रस्सी के हिलते ही उसने मुझे ऊपर खेंच लिया और कहने लगा कि लाओ, यह तुम्बी मुझे पकड़ा दो, मैंने कहा, पहले मुझे बाहर निकालो। फिर मैं तुम्हें तुम्बी दूगा, उसने कहा नहीं पहले तुम्बी दो, फिर निकालू गा ।" मैं समझ गया कि यह दुष्ट मुझे बाहर नहीं निकालना चाहता। यदि मैने इसे तुम्बी पकडा दी तो यह रस लेकर मुझे कुए में फेंक देगा। ____ यदि मैं तुम्बी न दू तो हो सकता है कि यह मुझे बाहर भी निकाल ले । पर वह दुष्ट तो अपने सिवा किसी को भी उस कूप का मार्ग नहीं बताना चाहता था। साथ ही उसे यह भी भय था कि बाहर निकल जाने पर मैं उसमें से आधा रस ले लू गा । इस पर जब उसने देखाकि मैं किसी प्रकार भी तुम्बी देना नहीं चाहता तो उसने मुझे डराया कि उसे तुम्बी न पकड़ाने पर वह मुझे फिर कुए मे लटका देगा। तदनुसार उसने मुझे वीरे-धीरे फिर कुए में उतारना शुरु कर दिया । बीच बीच में वह दुष्ट कहता जाता कि अब भी तू मुझे तुम्बी पकडा दे तो मैं तुझे बाहर खींच लू । पर मैने तो निश्चय कर लिया था कि मुझे तो दोनों अवस्था में मरना ही है। फिर मैं उसकी स्वार्थपूर्ति का साधना क्यों बनू , इसलिए मैंने उसकी बात न मानीं । और वह मुझे कुए में नीचे उतार कर चला गया। कुए के चारों ओर पक्का फर्श था, उसके ठीक बीच में एक छोटा सा रस कु ड था। मैं उसी कुड की दीवार पर जा बैठा, अन्धकारवृत उस कूप मे मझे कुछ भी नहीं दिखाई देता था।
इस प्रकार कूप की वेदिका पर दस बारह घटे तक बैठे रहने के पश्चात् जब सूर्य मध्याह्न पर पहुंचा तो उस कूप मे यत्किंचित् प्रकाश की रेखा पड़ने पर मैंने देखा कि कुए के रस मे कोई मनुष्य खड़ा है। वह अर्द्ध चेतन सी अवस्था में था, और रस से बाहर निकले हुए