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गवयत्ता परिणय नपाचान नगर ने बाहर जास्र नमु चि बोला-मैने अपनी प्रतिजानुमार 'पापको भूमि दे दी है । इसलिा प्राप तीन पग भूमि नाप लीजिये । बस फिर क्या था 'पार्य विप्ना ने अपनी विक्रिया नामक
कि प्रभाव से अपने आगेर 'पीर पाव को विस्तृत कर लिया और नमचि में मान लंगनि दर्वद्विादी पाव भूमि म तो तेरा नारा गरमा गया। बता तेरे वचनानुसार तीन पाव की भूमि कहा है ?
विप्रा यमार के उन विगट स्वरूप को देखकर राजा भय मे थर घर फापना या उनके चरणों में गिर पडा । दोनोहाय जोड़कर प्रार्थना फरने लगा कि
भगवन मेरे उपराध को जमा कीजिार' मैंने अज्ञानता से मा गराला या, भगवान में प्रापकी शरण में हूँ ।'
किन्तु उसके देखते ही देखने प्रार्य विष्णु का शरीर लाख योजन उचा हो गया। ___प्राय विप्रा के इस प्रकार विराट रूप धारण करते ही देवेन्द्र का मिामन थर-थर कापने लगा, उन्होंने 'प्रवधि ज्ञान के बल से जान लिगा कि २८ ता विष्णुकुमार ने दिव्य रुप धारण कर लिया है । गपत में विरमार गं। प्रमन्न करने के लिए वे नाचती, गाती. पार घनानी, र गन्धर्व पोर 'अप्सराश्री की मडली ‘अविपतियों ने पहने
गपियरे मावधान दोर देखी पद नमुचि राजा के दुराभिमान के पार विष्णुमार 'परणगार 'अपने विराट रूप से नलॉड मानात हो गये ।। ये सम्पूर्ण मष्टि में प्रलय काल का दृश्य
पनि पारने में भी समाई हैं। मलिए हे नत्य नान आदि के हाला कोर प्रसन्न कीजिए।
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