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गन्धर्ववत्ता परिणय
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और जन वह गाने लगती तो कोई भी उसके साथ वीणा न वजा अपना था, उस काय में वह सबको नाचा दिखा देती थी किन्तु प्राज वसुदेव कुमार न गान में न बजाने में किसी में भी गन्धर्वसेना से पाए न रहे। उन्हें इस प्रकार पटा तक गन्धर्व सेना का साथ देते देख सभी लोग सन्न रह गये। तब हर्षविभोर हो गन्धर्व सना ने सुगम विजय माला डालकर उनको पति रूप में वरण कर लिया | लुके प्रकार विजय प्राप्त कर लेने पर सब नगरवासी तथा प्राचार्य सुमीनार उनके भाई यशोप्रीव आदि सभी परमटर्मिन
पश्चात चारुदत्त ने वसुदेव को अपने महलो में ले जाकर शास्त्र विवि के अनुसार बडी धूम-धाम से गन्धर्व सेना के साथ विवाह कर दिया। विवाहोपरान्त सुग्रीव और यशोमोव दोनां आचार्य श्रेष्ठी चारुउसके घर था और उन्हें कहने लगे कि हमारी श्यामा और विजया नामक दोनो पुत्रिया भी गन्धर्व सेना की सखियां हैं यदि आपको व गन्धर्व सेना को कोई आपत्ति न हो तो ये दोनो लडकियां भी वसुदेव की सेना में पा जाये। यह सुन गन्धर्व सेना ने बडे हर्ष के साथ याचार्य सुमीय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और इस प्रकार श्यामा और विजया दोनो दिनों का विवाह भी वसुदेव के साथ हो गया, इस प्रकार यशुदेव कुमार अपनी तीनो रानियों के साथ आनन्द पूर्वक रहने लगे ।