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जन महाभारत immmmmmaaaraan सब लोगों के सामने उस वीणा के अान्तरिक भाग को खोलकर दिखा दिया गया तो सचमुच वैसा ही निकला। तब दूसरी वीणा लाकर उस के सामने रखी गई। उसे देखते ही उन्होने कहा कि यह वीणा तो जगल मे जली हुई लकडी से निर्मित है। इसलिये इसका स्वर बड़ा कठोर है । तब वीणा बनाने वाल को बुलाकर पूछा गया तो उसने कहा कि "यह सत्य है ।" तत् पश्चात् उनके समक्ष जो तीसरी वीणा लाई गई उसके सम्बन्ध मे उन्होने कहा कि यह वीणा पानी में गली हुई लकड़ी से बनाई गई है। इसलिये इसका स्वर गभीर निकलेगा। अतः मैं इसे भी स्वीकार नहीं कर सकता। यह सुन सारी सभा परम हर्षित और विस्मित हुई । तदनन्तर एक बडी सुन्दर चन्दन चर्चित सुगन्धित पुष्प-मालाओ तथा सात स्वरों से युक्त तारों वाली वीणा उपस्थित की गई। उसे देखकर वसुदेव ने कहा कि यह वीणा श्रेष्ट है, किन्तु यह आसन कलाकार के लिये सुखावह नहीं है । अतः वसुदेव के निर्देशानुसार सुन्दर आसन बनाया गया । तब वसुदेव ने पूछा कि मै किस गीत के द्वारा गधर्व सेना को तथा उपस्थित सभा का मनोरजन. करूँ।
गधर्व सेना ने कहा कि "हे । महाभाग यदि आप वीणा बजाने मे प्रवीण है तो राजा नमुचि ने मुनियो पर उपसर्ग किया था और विष्णु कुमार ने वामन रूप धारण कर उसे दूर किया था। तब नारद तुम्बरु आदि सगीताचार्यों ने जो गीत गाया उसी गायन को लेकर आप वीणा बजाये क्योकि साधु मुनियों की महिमा का वर्णन करने वाले गायन ही सुनने और सुनाने के कल्याण कारक होते है।
गधर्व सेना के आदेशानुसार कुमार ने सगीत शास्त्र के +सिद्धान्तो का भूमिका रूप में परिचय देते हुए विष्णु गीत प्रारम्भ कर दिया। वाद्य चार प्रकार के होते है । १. तन्त २ अनुब्ध ३. धन ४. सुशिर । वीणा आदि जो वाद्य यंत्र तार से बजाये जाते है, उन्हे तन्त कहते हैं। चमड़े से मढ़े मृदंग आदि अनुब्ध है। कॉसे के मजीरे आदि को धन कहते हैं और वशी आदि छिद्रों वाले वाद्यों को सुशिर कहते है। तन्त (वीणा आदि) वाद्यो को गंधर्व विद्या का शरीर माना गया है । क्योंकि इसके सुनने से मनुष्यो के कान विशेष रुप से तप्त होते है और
---वहाँ पर वसुदेव ने सगीत के तत्त्वो का इस प्रकार विवेचन किया था।