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________________ - जैन महाभारत उसके दोहद के दिवसो के पूरा हो जाने पर नवे मास मे एक पुत्र रत्न उत्पन्न हुआ। जात कम आदि सस्कार करने पर उत्र पुत्र का नाम अक्रर रक्खा गया। इस प्रकार एक वपे बीत गया। इसी बीच एक बार वसुदेव उद्यान में भ्रमण कर रहे थे कि उन्हे देख कर किसी ने कहा-बड़े आश्चर्य की बात है कि इस व्यक्ति का रूप बहुत कुछ तो मिलता जुलता सा है । दसरे ने पूछा किससे मिलता जुलता है । वह बाला कि कुमार वसुदेव से। यह सुनकर वसुदेव सोचने लगे कि कभी कोई मुझे पहचान ले इसलिए यहा से आगे बढ़ जाने मे ही भलाई है । यही सोचकर उन्होंने वहाँ से चलने की तैयारी कर ली। राजकुमारी श्यामा का वरण और अंगारक से युद्ध वसुदेव ने अपनी दोनो पत्नियों को खूब समझा बुझाकर तथा धैर्य बधाकर उनसे आगे बढ़ने की स्वीकृती प्राप्त करली। विजयखेट से चलकर वे सीधे उत्तर की ओर बढ़ गए । चलते २ वे हेमन्त पर्वत के पास पहुँच उसके साथ-साथ पूर्व की ओर चलने लगे । वे कु जरावर्त नामक वन में जा पहुँचे। यहां पर वे बहुत अधिक श्रांत और पिपासा कुलित हो गये । इतने में उनके कानों में जलचर पक्षियों की कूजन ध्वनि पड़ी। वे उस ध्वनि का अनुसरण करते हुए जलावत नामक सरोवर के तट पर जा पहुंचे। यहां पहुचकर वे सोचने लगे कि अभी मार्ग के श्रम से थके हुए गर्म २ शरीर के रहते हुए पानी पीना ठीक नहीं रहेगा। इसलिए कुछ विश्राम करलू और फिर जलपान कर अपनी तृष्णा को शान्त करूगा। ___इतने में उन्होंने देखा कि अनेक हथनियों से परिवृत एक गजराज उसी ओर चला आ रहा है। पहले तो उन्होंने सोचा कि ये भी सम्भवतः इस सरोवर में जलपान और स्नान करने के लिए आए हैं। पर ज्यों २ वह गधगज उनके निकट आने लगा त्यों २ स्पष्ट प्रतीत होता था कि वह उनकी सुगन्धी के कारण उन्हीं पर आक्रमण करने के लिए चला आ रहा है। उसने पास मे आते ही कुमार को अपनी सूड से लपेटकर पछाड़ फैकना चाहा पर वसुदेव ने तत्काल पैंतरा बदल कर उस अत्यन्त बलिष्ठ हाथी से अपने आपको बचा लिया। इस प्रकार एक दो दावों मे ही उस मदोन्मत्त गजराज को अपने वश में
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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