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जैन महाभारत
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तब बुढ़िया ने कहा, - हे भाई, तुम थक गये दीखते हो इसलिए रथ मे आ बैठो। वसुदेव को और क्या चाहिये था वे तत्काल रथ में जा बैठे। इस प्रकार वे दिन मे भी गुप्त रीति से यात्रा करते रहे सूर्यास्त समय वे उस सुन्दरी के मायके सुग्राम नामक नगर मे जा पहुँचे, वहाँ उसके घर पर स्नान भोजनादि कर वहां से थोड़ी ही दूर एक यक्ष मन्दिर मे जा विश्राम करने लगे। वहां पर एकत्र जनसमूह में नगर से आई हुई वसुदेव की मृत्यु की सूचना के कारण बड़ा कोलाहल सा मचा हुआ था । सब लोग यही कह कह कर रो पीट रहे थे कि हाय ! हमारे प्रिय वसुदेव कुमार अग्नि प्रवेश कर गये हैं । यह सुनकर वसुदेव ने निश्चय कर लिया कि सब लोगों को उनके मर जाने का विश्वास हो गया है। मेरे जीते जी बच निकलने की बात का किसी को भी पता नहीं लगा, मेरे घर वालों ने मुझे मृत जानकर मेरी देही क्रिया भी कर दी है अब वे मुझे ढूंढने का विचार भी न करेंगे । इसलिए मैं स्वेच्छानुसार निर्विघ्न विचर सकू गा इस प्रकार सोचते सोचते उसी यक्ष मन्दिर में रात्रि बिता के प्रात काल ही उत्तर दिशा की ओर चल पड़े । और चलते चलते विजय खेट नगर मे जा पहुँचे । वसुदेव का श्यामा तथा विजया से विवाह
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विजय खेट नगर के बाहर दो व्यक्ति वृक्ष के नीचे सोये हुवे थे, उन्होने उन से कहा कि भाई बहुत थके हुए प्रतीत होते हो, कुछ देर यहीं बैठकर विश्राम कर लो । अतः वे वहीं बैठ गये । तब उसने उनके नाम धाम आदि के सम्बन्ध मे पूछा । इस पर उन्होंने कहा 'मै गौतम नाम का ब्राह्मण हॅू ओर कुशाग्रपुरी से विद्या पढ़ कर चला आ रहा हू । तत्पश्चात् कुमार वसुदेव ने पूछा कि -
हे भाई | तुम ने मेरे सम्बन्ध मे इतनी जिज्ञासा क्यों की है ? तब उस यात्री ने कहना शुरू किया कि - यहाँ के महाराज की श्यामा और विजया नामक दो पुत्रियाँ हैं । वे अत्यन्त रूपवती तथा संगीत और 1 नृत्य आदि विद्याओं मे परम प्रवीण हैं। उन्होंने यह प्रतीज्ञा की हुई है कि जो विद्याओं में हम से बढ़कर होगा, हम उसी से विवाह करवायेंगी । इसलिए महाराज ने सब देशों में यह सूचना भिजवादी हैं कि जो ब्राह्मण या क्षत्रिय युवक रूप गुण और विद्याओ में श्रष्ट हो, उन सब को हमारे यहाँ ले आया । क्योकि वे अपनी कन्याओ का