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हो जाते है। भाषा और मन के परमाणुओ का ग्रहण काय के द्वारा होता है। फिर उनका भाषा और मन के रूप मे परिणमन होता है और विसर्जन-काल मे वे भाषा और मन कहलाते है। भाष्यमाणी भाषा होती है, पहले-पीछे नही होती, इसी प्रकार मन्यमान मन होता है, पहले-पीछे नही होता। ___काय वाणी और मन की प्रवृत्ति का स्रोत है, इसीलिए उसकी निवृत्ति या स्थिरता वाणी और मन की स्थिरता का आधार बनती है। काय का त्याग होने पर वाणी और मन स्वय त्यक्त हो जाते है।
शरीरशास्त्र की दृष्टि से शरीर की प्रवृत्ति और निवृत्ति के परिणाम इस प्रकार है
प्रवृत्ति (श्रम) के परिणाम
१ स्नायुओ मे स्नायु शर्करा कम होती है। २ लेक्टिक एसिड स्नायुओ मे जमा होता है। ३ लेक्टिक एसिड की वृद्धि होने पर उष्णता बढती है। ४ स्नायु-तत्र मे थकान आती है।
५ रक्त मे प्राणवायु की मात्रा कम होती है। निवृत्ति (आराम) के परिणाम
१ लेक्टिक एसिड का पुनः स्नायु शर्करा मे परिवर्तन होता है। २ लेक्टिक एसिड का जमाव कम होता है। ३ लेक्टिक एसिड की कमी से उष्णता मे कमी होती है। ४ स्नायुतत्र मे ताजगी आती है। ५ रक्त मे प्राणवायु की मात्रा वढती है।
स्वास्थ्य की दृष्टि से भी कायोत्सर्ग कम महत्त्वपूर्ण नही है। स्नायविक तनाव और कायोत्सर्ग
मन, मस्तिष्क और शरीर मे गहरा सम्बन्ध है। उनकी सामजस्य-विहीन गति से जो अवस्था उत्पन्न होती है, वही स्नायविक तनाव है। शरीर और मन की सक्रियता का सन्तुलन रहना, प्रवृत्ति की बहुलता या संकुलता,
५४ / मनोनुशासनम्