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२ ऊनोदरिका-रसपरित्यागोपवास-स्थान-मीन-प्रतिसंलीनता
स्वाध्यायभावना व्युत्सर्गास्तत् सामग्र्यम् ॥
अल्पाहार ऊनोदरिका ॥ ४ दुग्धादिरसानां परिहरणं रसपरित्यागः ॥ ५ अशनत्याग उपवासः॥
२ ऊनोदरिका, रस-परित्याग, उपवास, स्थान-आसन, मान,
प्रतिसलीनता, स्वाध्याय, भावना ओर व्यत्सर्ग-ये सव ध्यान के
सहायक तत्त्व है। ३ ऊनोदरिका का अर्थ हे-कम खाना, परिमित खाना, आता पर
किचित् भी भार न डालना। ४ यथोचित रीति से दूध आदि रसो का वर्जन करना
रसपरित्याग है। ५. यथाशक्ति-मन आर्त्त न हो, वैसे अशन का त्याग करना
उपवास है।
ध्यान और आहार ध्यान का सम्वन्ध जितना मन से है, उतना ही शरीर से है। मस्तिष्क जितना भार-मुक्त होता है, उतना ही ध्यान अच्छा होता है। मस्तिष्क का भार-मुक्त होना आमाशय, पक्वाशय और मलाशय की शुद्धि पर निर्भर है। इनकी शुद्धि के लिए भोजन पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है। जो आदमी भरपेट खाता है, वह ध्यान नहीं कर सकता। जो ध्यान करना चाहे उसके लिए पेट को हल्का रखना-कम खाना बहुत आवश्यक है।
आयुर्वेद के अनुसार भूख के चार भाग किए जाते है। दो भाग भोजन करना चाहिए, एक भाग पानी और एक भाग भोजन के वाद वनने वाली वायु के लिए छोड देना चाहिए। दो भाग खाना परिमित भोजन है। परिमित भोजन करना ऊनोदरिका की मर्यादा है।
भोजन के एक घटा वाद पानी पीने और वायु वनने पर पेट हल्का रहे, कोई भार प्रतीत न हो तो समझा जा सकता है कि भोजन परिमित हुआ है।
४८ / मनोनुशासनम्